जब बस स्टैंड गांधी मार्केट से फौजी चौक गया, तो लोग येही कहते थे की यह तो बहुत गलत किया। यहाँ श्हर के बीच, रेल्वे स्टेशन के पास। वहाँ रात को कैसे कोई जया करेगा। येही आप वाले आर्गुमेंट। लेकिन कुछ भी नहीं हुआ।
उसके बाद फौजी चौक पर rush थोड़ा ही बढ़ा था, तो अब वाली जगह पर ले गए, फिर वही आर्गुमेंट। की यहीं ठीक था, अब कितनी क दूर लेकर जाएंगे?
कितने ही श्हर देख लो। बर्नाला, मनसा, फ़रीदकोट, जहां बस स्टैंड रेल्वे से इतनी दूर हैं की ऑटो / रिकक्ष के बिना नहीं जाया जा सकता है। और जहाँ बस स्टैंड श्हर से बाहर लेकर गए, लेकिन बाद में वहाँ rush बढ्ने पर उससे भी बाहर लेकर गए। यह सब एक बार लगता होता है। भीड़ वाले स्थान से buses को बाहर जाना ही चाहिए।
यह आर्गुमेंट बिलकुल गलत है की बाहर से आए यात्रियों को श्हर के भीतर खींच कर लाने के लिए buses को श्हर के बीच में लाना चाहिए। अगर कुल यात्रियों में से सिर्फ 2-3% यात्रियों को कुछ खरीदना भी है तो बाहर जाने के बाद भी वो वहीं आसपास से, या श्हर के अंदर आकार खरीद लेंगे। बल्कि वो ऑटो वाले को भी बिज़नस देंगे श्हर में आने के लिए। और अगर कुछ पैसेंजर कहीं और श्हर में जाकर खरीददारी कर भी लेंगे, तो वो कोई खास बात नहीं। जहाँ वो करेंगे, वो भी हमारी तरह इंडिया के निवासी ही होंगे। हमने थोड़े से बिज़नस के लिए श्हर वासियों की सांसें दुश्वार नहीं करनी। उनकी जिंदगाई, खास तोर पर छोटे बच्चों की, सांसत में नहीं डालनी।
और वैसे भी, जहाँ भी बस स्टैंड जाएगा, वहाँ मार्केट खुद ब खुद बन जाएगी। और जब वहाँ पर भी rush हो जाएगा 20 वर्षों में तो इसको बिलकुल सिटि की बाउंडरी पर लेकर जाना ही होगा॥ क्यूंकी बसस चीज़ ही ऐसी हैं। भीड़ में इंका आना मौत को डावात देना है।
सरकारी और प्राइवेट की उधारन मैं आपको उपर अपने जबाब में दे चुका हूँ। अगर आप फिर भी संतुस्त नहीं हैं तो किसी भी 10 बंदों को पूछ लें की जब से देश में मनमोहन सिंह ने privatization किया है, उनको सुख की सांस आई है, या दुख की। प्राइवेट कोंपनीस को वो अच्छा समझते हैं या सरकारी को? आपको जबाब मिल जाएगा।
इसके बाद, जो पॉइंट हमने उठाए हैं, उनके क्या जबाब हैं आपके पास? जो सिटि के अंदर ट्रेफिक ने लोगों का जीना मुहाल कर रखा है? इसके बाहर जाने से जो सड़कों को, लोगों को और स्कूल जाने वाले बच्चों को रोज़मर्रा के जीवन में सुख की सांस आ जाएगी, उसका क्या?
खुर्द बुर्द तो सरकार कुछ भी कर सकती है। फिर तो जो सरकारी खजाना है, वो भी उसके पास सुरक्शित नहीं है।
मेरे कहने का मतलब है की जब हम बस स्टैंड सरकारी बंदों से बनवाना चाहते हैं तो फिर सरकार पर यक़ीन क्यूँ नहीं कर रहे? एक तरफ तो आप कह रहे हैं की सरकार जमीन बेच कर पैसे खुर्द बुरद न कर दे। दूसरी और आप कह रहे हैं की बस स्टैंड बनवाने का काम सरकार खुद करे, प्राइवेट बंदों के हाथ में न दे (क्या प्राइवेट बंदे सही हैं या सरकारी सही है?)
जब भी कोई नयी चीज़ शुरू होती है, कुछ ही देर ऐसा महसूस होता है। उसके बाद नए एरिया में बढ़िया चहल पहल रहने लग जाती है।
सर जी, आप यह बता दो, की आपकी निगाह में ख़जाना, या कोई कन्स्ट्रकशन के काम, सरकार बेहतर तरीके से कर सकती है, संभाल सकती है, या प्राइवेट कंपनी/contractor?
क्यूंकी एक तरफ तो आप सरकार को नकारा और चोर कह रहे हैं।
दूसरी तरफ आप कह रहे हैं की प्राइवेट कोंपनीस चोर होती हैं, और सरकार ही काम करे।
मुझे लगता है की आप या आपका कोई करीबी पीआरटीसी में काम करता है। जो आप उसकी इतनी तरफदारी कर रहे हैं। वरना पीआरटीसी की बस में तो कोई बैठ कर खुश नहीं।
प्राइवेट का मज़ा सब लेना चाहते हैं।
आप किनही लोगों से पूछ लो, वो कहेंगे की जबसे मनमोहन सिंह ने privatization की है, देश तरक्की कर रहा है।
मेरी निगाह में बस स्टैंड को सभी बाहर निकालना चाहते हैं (आप उपर जो पोल हुआ है, उसका रिज़ल्ट देख सकते हैं), सिर्फ इन लोगों को छोड़ कर:
बस स्टैंड के आस पास के शॉप कीपर। हालांकि यहाँ पर जीतने शॉप कीपर को फाइदा है, उससे कहीं जो आसपास घरों में रहने वाले लोग हैं उनको कहीं ज्यादा दिक्कत है। और वैसे भी, नयी जगह पर जो शोप्स खुलेंगी, वो भी इसी देश के वासी होंगे।
बाकी सभी इसको बाहर चाहते हैं श्हर से।
ऑटो वाले खुश क्यूंकी उनका कारोबार बढ़ेगा।
बस स्टैंड के आस पास वाले रिहयशी सभी खुश, क्यूंकी वो इतनी भीड़ और rush से परेशान हैं। encroachment का बुरा हाल है।
स्कूल जाने वाले बच्चे खुश: क्यूंकी उनको बड़े वेहिकलस के नीचे आने का डर नहीं रहेगा।
बाकी सारा सहर खुश, क्यूंकी सारी जीटी रोड पर rush कम हो जाएगा।
और हम जैसों ने जिनहोने कभी कभार सफर करना है, वो अब भी अपने घर से ऑटो पर जाते हैं। अब 10 लेता है, फिर 20 ले लिया करेगा।
और जो डेलि सफर करते हैं, वो भी अपना उसी तरीका का हिसाब बना लेंगे।
बाकी कमिशन आदि तो चलता ही रहा है, और आने वाले काफी वर्षों तक चलता ही रहेगा, उनको एक बस स्टैंड के बनने या न बनने से कोई बहुत फर्क पड़ने वाला नहीं है।
Mein chaunda Han ki bus stand Bahar jaave jadki mein regularly buses ch travell karda Han.
Saare cars wale maade nahi hunde ate naa hi saare Bina cars wale change hunde aa…
Local Banda hi local market ch purchasing karda… Sambadh sare localites da hunda market naal .
Khurad burad Wich commission wali gal tan wadde level di aa … menu nahi lagda ehoje commission Wala koi person is debate ch participate kar riha hou .
Local market nu koi bahuta asar nahi Pena isda… Kyonki… villages walya mini buses tan aaun Gyan ethe.
Je kise ne koi plot ya zameen us jagah already lai layi tan usne future planning karke sarkar da decision aun ton baad hi liti hou… Eh tan usdi apnj smartness hoi.
Virasat de chakkar ch… Outdated industry kinna time challu sir… Eh veham aa ki ethe Rs2 per unit paida hundi si… Ghaate ch hi chal riha si thermal… Employees di salary tak nahi Jud di si… Jina amount isdi renovation tae lagna so… Us naal ik hor new power plant ban Jana si… Thermal plant ne tan ji Hun sirf jagah hi gheri hoi as…
kitni acchi baat kahi ki agar kisi ne jameen pehle soch ke li hogi, to wo uski apni samjh hai.
main ismein yeh bhi add karna chahungi ki jaroori to nahin ki usko land lene ka fayda hi ho, maan lo ki bus stand abhi bhi yahin par rah gaya, to fir unki samjhdaari to nuksaan mein badal jayegi? Fir to koi nahin kahega unko, koi nahin dega kuch? fir?