पुरातन काल में उतनपदा नाम का एक राजा था। जिसकी दो पत्नियाँ थीं। सुरुचि और सुनीति।
सुरुचि के एक पुत्र था, जिसका नाम उत्तम था।
और सुनीति के दो पुत्र थे, जिसमें से बड़े पुत्र ध्रुव को उसके पिता का उतराधिकार, यानि राज पाठ मिलना था।
लेकिन राजा का झुकाव अपनी छोटी रानी सुरुचि की और ज्यादा था। एक दिन राजा अपने सिहंसान पर अपने छोटे बेटे उत्तम को गोद में लिए बैठा था। तभी वहाँ पर ध्रुव भी आ गया। उसने भी अपने पिता के दूसरे घुटने पर बैठने की जिद्द की। लेकिन पास ही बैठी सुरुचि ने उसको वहाँ बैठने नहीं दिया, और वो रोता रोता अपनी माँ के पास चला आया।
उसकी माँ को सब मालूम था की वो चाह कर भी अपने पुत्र को अपने पति की गोद में बिठवा नहीं पाएगी। वो बोली, बेटा, इस धरती के एक छोटे से राजा की गोद में बैठ कर क्या करोगे। बैठना ही है तो उस परम पिता की गोद भगवान विष्णु की गोद में बैठो, जहाँ से तुम्हें कोई भी उठा नहीं सकेगा। ध्रुव के मन में वो बात बैठ गई, और वो अपनी माँ से आज्ञा लेकर जंगलों में चला गया।
उसने जंगलों में कंद मूल खा कर गुज़ारा करना शुरू कर दिया। तभी नारद जी वहाँ से गुजरे।
उनको नन्हे से, केवल 5-6 वर्ष के बालक को देख कर उस पर तरस आ गया और वो उसके पास आकर उसको समझाने लगे की इस जंगल में उसके जैसे बालक का कोई काम नहीं और वो जंगली जानवरों के बीच अधिक दिन तक जिंदा नहीं रह पाएगा।
लेकिन ध्रुव अपने इरादे का बहुत ही पक्का था, यह जानकार नारद जी ने उसको जंगल में रहने के कुछ तरीके सिखाए। और जाते जाते भगवान विष्णु के नाम के जाप का मंत्र “ॐ नमे भगवते वासुदेव” बता कर चले गए।
बच्चे ने इतनी लग्न से वो जाप करना शुरू कर दिया की अंतत भगवान विष्णु उस पर प्रसन्न होकर प्रगट हो गए। उन्होंने न केवल उसको अपनी गोद में बिठा कर प्यार किया, बल्कि, उसको यह भी वरदान दिया की वो मर कर भी सदा उनकी गोद में रहेगा।
उसके बाद वो बालक वापिस प्रसंतापूर्वक अपने पिता के शहर में आ गया। इधर उसके पिता को भी जैसे अक्ल आ गई थी। और बड़ी खुशी से, बड़े प्यार से अपने बेटे को शहर के बाहर से लेकर गए और उसका राज्य अभिषेक किया। टाइम आने पर उसी को राजा बनाया गया। ध्रुव ने बहुत देर तक बहुत न्याय पूर्वक राज किया।
और ध्रुव की मृत्यु के बाद, सचमुच ही वो आकाश का तारा बन कर सदा के लिए भगवान की गोद में बैठ गया।
आपको शायद मालूम होगा की पृथ्वी और ग्रहों की स्तिथि के मुताबिक सभी स्टार्स की स्थिति बदलती रहती है, सिवाय ध्रुव तारे के। केवल ध्रुव तारा ही (जिसको इंग्लिश पोल स्टार कहते हैं) एक तारा है, जिसकी स्तिथि पूरे वर्ष एक सी रहती है, और इसी लिए पुरातन काल से ही यात्री, उसी को निगाह में रख कर रातों में अपने रास्ते तलाश कर अपनी मँजिल की और बढ़ते रहे हैं।
बॉबी जोफ़न