पशु जगत में जितने भी प्राणी हैं उनके लिए विधि ने दो बातों का प्रबन्ध अवश्य किया है (अगर इंसान उसमें दखल न दे)। पहली है भोजन की व्यवस्था एवं दूसरा अपना बचाव। सीधी सी लगने वाली गाय भी सामने के आक्रमण से सींगों द्वारा अपना बचाव करती है और पीछे से होने वाले आक्रमण का लात मार कर।
ठीक इसी तरह घोड़ों के खड़े खड़े सोने का कारण उनकी आत्म रक्षा से जुड़ा है। आपने घोड़ों को सोते तो क्या, बैठे भी कम ही देखा होगा।
ज़मीन पर सोये घोड़े को उठ कर भागने में अन्य पशुओं की अपेक्षा बहुत समय लगता है और इससे निश्चय ही वह शिकारी जानवरों का ग्रास बन सकते हैं। अत: उनकी टाँगों की हड्डियों की व्यवस्था यूँ कर दी गई है कि घोड़े जब चाहें उन्हें आपस में लॉक कर आरामपूर्वक खड़े होकर सो सकते हैं, बिना गिरने के भय के। न वह गिरते हैं न ही थकते हैं। सो खड़े होकर सोना उनके लिए कोई समस्या नहीं। और यही उनका सुरक्षा तंत्र है।
घोड़ों को नींद की आवश्यकता और सब की बनिस्बत बहुत कम होती है- रात दिन मिलाकर दो या तीन घण्टे बस, जिस में से अधिकांश तो वह खड़े खड़े दस बीस मिनट की अलग अलग झपकियों में पूरा कर लेते हैं। यूँ तो बहुत लम्बा खड़े रहने पर भी उनकी टाँगें थकती नहीं परन्तु उसका यह अर्थ भी नहीं कि बैठने या लेटने में वह असमर्थ होते हैं। दरअसल वह बैठ भी सकते हैं और लेट भी। बस अपनी सुरक्षा के हित में नहीं लेटते। परन्तु जिस स्थान पर वह स्वयं को सुरक्षित महसूस करते हैं जैसे अस्तबल में अपने साथियों के संग, तो वह लेट कर सो लेते हैं।
खुले खेतों में वह पसर जाना उन्हें बहुत प्रिय है पर ऐसे समय में आप देखेंगे कि उनमें से एक चौंकना होकर खड़ा रहता है। ऐसा वह बारी बारी करते हैं। इसी तरह अस्तबल के भीतर भी बारी बारी से रखवाली करते हैं।
एक और तरीक़ा है, टाँगों की थकान मिटाने का। जब घोड़े को लम्बे समय तक खड़ा रहना होता है तो वह चार में से एक टाँग को थोड़ा सा ऊपर उठा रखता है। इस तरह बारी बारी हर टाँग को थोडा विश्राम मिल जाता है।
हाँ घोड़ों के लिए लम्बे समय तक बैठना मुश्किल होता है। इससे पेट पर दबाव पड़ने के कारण उन्हें साँस लेने में कठिनाई होती है और लम्बे समय तक बैठना प्राण घातक भी हो सकता है।