कैसे एक दलित समाज का बंदा जब मर्जी किसी पर भी उंगली उठा सकता है की इसने मुझे बनिया, चूड़ा, चमार, या बढ़ई, अछूत, दास, गिरिजन या अन्य ऐसा कुछ भी कह दिया है।
खुद अनूप जी की व्यथा, विद प्रूफ़ सुनिए की वो कैसे किसी की भी जाती की सूचना दे सकते हैं, या पूछ सकते हैं?
जो देव समाज का मुद्दा किसी भी न्यूज पेपर को दिखाई नहीं दिया पिछले 3 महीने से।
जब बठिंडा हेल्पर ने खूब शोर मचाया, तो आज वो मुद्दा, भगवान का शुक्र है की, हरएक अखबार को दिख गया।
भास्कर, जिसमें लिखा था की ढीलों कहता है देव अनूप 22 लाख खा गया, जबकी वो सामने पड़े थे पैसे, वही भास्कर आज सारी स्टोरी छापने पर मजबूर हो गया।
पंजाब केसरी और जागरण में भी आने लग ही गईं इनकी न्यूज अब। क्यूंकी यह सारे समाज का मसला है। कब तक इग्नोर करेंगे इसको???