रावण: पंडित या असुर? (continues)

रावण के जन्म के पीछे के कहानी/कारण इस आर्टिकल में पढ़ सकते हैं.

बाल्यकाल में ही रावण ने चारों वेद पर अपनी कुशाग्र बुद्धी से पकड बना ली, उसे ज्योतिषि का इतना अच्छा ज्ञान था कि, उसकी रावण संहिता आज भी ज्योतिषी में श्रेष्ठ मानी जाती है. युवावस्था में ही रावण तपस्या करने निकल गया उसे पता था कि ब्रह्मा जी उसके पुरखों में से हैं, इसलिये उसने पहले उनकी घोर तपस्या की और कई वर्षों की तपस्या से प्रसन्न होके ब्रह्मा जी ने उसे वरदान माँग़ने को कहा, तब रावण ने अजर–अमर होने का वरदान माँगा. ब्रह्मा जी ने कहा मैं अजर अमर होने का वरदान नहीं दे सकता हूँ तुम ज्ञानी हो इसलिये समझने का प्रयास करो. मैं तुम्हें वो नहीं दे सकता हूँ लेकिन बदले मैं अन्य बहुत सी शक्तियां देता हूँ। रावण तपस्या के बल से मिली उन शक्तियों को प्राप्त करके आया व अपने माता-पिता से मिला। वे बहुत प्रसन्न हुए।

अब रावण के मन में थोडा अभिमान आ गया और एक दिन, दो चार साथियों को लेके रावण अपनी युवावस्था में सहस्त्रबाहु अर्जुन के राज्य की सीमा में गया, वहाँ नर्मदा नदी के किनारे उसने देखा नदी की चौडाई बहुत होने के बाद भी उसमें जल बहुत कम था। रावण ने अपने साथीयों से पूछा कि ये नदी का जल इतना कम कैसे है? पहले तो इसमें बहुत जल भरा हुआ करता था। तब साथियों ने थोडा आगे बढकर देखा तो उनको वहाँ वाणों से निर्मित एक बाँध नजर आया, जिसमें नदी का समस्त जल रोका गया था। और उस जल स्तर में कुछ इस्त्रियाँ इशनान कर रहीं थीं।

तब रावण के साथियों ने रावण को बताया कि महराज सहस्त्रबाहु अर्जुन ने वो इस समय अपनी पत्नीयों के साथ विहार करने आये हैं। और उन्होंने ही पानी को बाँध रखा है।

रावण ने कहा अच्छा तो अब मेरा कौशल देखो और एक ही बाण से उसने वो बांध तोड दिया. सहस्त्रबाहु की पत्नीयां जो स्नान करने के लिए गई थी बह गई काफी प्रयास करने के बाद उन्हें निकाला गया. जब इस बात की सूचना सहस्त्रबाहु को उसके सैनिकों ने दी, तब इसी बात पर सहस्त्रबाहु और रावण का युद्ध हो गया और रावण हार गया।

उसको बंदी बना लिया और जेल डाल दिया. उसके साथी भाग गये और रावण के दादा जी मुनि पुलस्त्य को सब कुछ बताया गया। तब मुनि ज़ी ने सहस्त्रबाहु अर्जुन के पास संदेश भेजा कि रावण युवक है और युवावस्था में गलती की सम्भावना हो जाती है। इसलिये उसे छोड दो. अर्जुन ने उसे छोड दिया और चेतावनी दी कि दुबारा इस तरह की गलती न हो नहीं तो एक भी सर धड पर नहीं दिखाई देगा. रावण को बहुत ग्लानि महसुस हुई और उसने उसके बाद वर्षो तक पुन: ब्रह्मा जी के लिये तप किया।

ब्रह्मदेव के पृकट होने पर उसने फिर से अमर होने का वरदान माँगा. लेकिन इस बार भी उसे अमर होने का वरदान नहीं मिला। लेकिन और ज्यादा मायावी शक्तियां प्राप्त हुईं।

मायावी शक्तियां पाने के बाद एक दिन रावण घुमते हुए वानरों के राज्य क्षेत्र में प्रवेश कर बैठा। शाम का समय था वानरों का राजा बालि (सुग्रीव का भाई) उस वक्त एक वृक्ष के नीचे संध्या जप कर रहा था। रावण उसे देख कर हँसा और फिर उसे छेडने लगा ऐ मर्कट, ऐ बंदर बोल उसका उपहास करने लगा और युद्ध करने के लिये उकसाने लगा. असल में रावण को अपनी मायावी शक्ति पर घमंड आ गया था वो बालि से बोला कि अरे मर्कट मैंने सुना है तु बहुत शक्तिशाली है आ जरा मुझसे युद्द कर के देख। मैं तेरा अभिमान मैं कैसे ढीला करता हूँ. लेकिन बालि ध्यान में था इसलिये उसने इसकी बात को सुना ही नहीं. इसके बाद रावण ने उसको जोर से लात मारी और बोला पाखंडी मेरे ललकारने के बाद मेरे डर से ध्यान में बैठा है, सीधे-सीधे बोल कि मैं नहीं लड सकता. बालि (जिसको वरदान था की जो भी उससे लडेगा, उसका आधा बल बाली में आ जायेगा) क्रोध से ऊबल पडा उसने रावण को पटक-पटक कर इतनी मार मारी बस वो सिर्फ मरने से ही बचा और फिर उसे अपनी पूँछ में बाँध कर लपेट लिया, और पुन: संध्या वंदन समाप्त करके उसने रावण के गर्व को चूर-चूर कर दिया.

छ: महीने तक बालि ने उसे इन्हीं ढंग़ो से अपनी कैद में रखा। एक दिन बाली उसे अपनी बाईं काँख में दबाकर जा रहा था तभी उसके हाथ की पकड ढीली हो गयी और रावण भाग निकला। और ऐसा भागा की फ़िर वो उसको दिखाई नहीं दिया.

अब रावण को पता चल गया कि उससे भी बलशाली लोग हैं दुनिया में। मुझे ही पितामह की वजह से अभिमान ज्यादा था।

इसके बाद वो फिर से घोर तपस्या करने निकल पडा और फिर से उसने अमर होने का वरदान माँगा. ब्रह्मा जी ने इस बार उस को पहले से भी अधिक प्रचंड शक्तियां और ब्रह्मास्त्र प्रदान किया.

इसके तत्पशात रावण ने एक दिन देवताओं से किसी बात पर नाराज हो गया और उसने स्वर्ग में अकेले ही चढाई कर दी और घोर युद्ध में उसने अकेले ही सभी देवताओं को परास्त कर डाला. इंद्र, यम, वरूण अन्य सभी दिकपाल और प्रजापतियों को बंधक बना लिया अन्य सभी देवता स्वर्ग से भाग निकले, उसने स्वर्ग लोक पर अधिकार कर लिया और बाद में उसे देवताओं को लौटा दिया, लेकिन देवताओं का मान भंग हो गया वो चुपचाप हो गये.

दानवों को पता चला कि उनका भांजा रावण अकेले ही स्वर्ग में सभी देवताओं को परास्त कर दिया तीनो लोकों में इस बात का पता चला और इस बात से दानव बहुत खुश हो गये उनकी वर्षो की मनोकामना पूर्ण हो गयी और दानवों ने रावण की जय जयकार की और रावण को अपना राजा बनने कि प्रार्थना की. इस प्रकार रावण, एक साधारण मनुष्य से, जोकि देवता और दानव दोनों था, दानवों का राजा बन गया.

रावण के तेज और उसके भव्य स्वरूप और नेतृत्व से मय दानव ने प्रसन्न हो के अपनी अत्यंत सुंदर और मर्यादा का पालन करने वाली पुत्री मंदोदरी का विवाह रावण के साथ किया और रावण पत्नी रूप में मंदोदरी को पा के प्रसन्न हुआ. पतिव्रता नारियों में मंदोदरी का स्थान देवी अहिल्या के समकक्ष है.

रावण राजा के रूप में राक्षसों द्वारा प्रतिष्ठित हो गया तो फिर उसने अपने लिये राजधानी का निर्माण करने की सोची, वो फिर से स्वर्ग गया शायद राजधानी बनाने के लिये ये ठीक रहे, सभी देवता इंद्र, यम, वरुण उसे देख भाग लिये, वो खुस हुआ लेकिन उसे स्वर्ग पसंद नहीं आया वापसी में लौटते वक्त उसे समुद्र में त्रिकूट पर्वत पर सुंदर नगर नजर आया. वो सीधे उधर गया वहाँ उसने देखा उसका ही सौतेला भाई कुबेर यक्षों के साथ रहता है उसने कुबेर को उस नगर को यक्षों सहित खाली करने को कहा. कुबेर अपने पिताजी के पास गया और कहा पिताजी रावण जबरन लंका खाली करने को कह रहा है तब उन्होंने कहा पुत्र रावण इस वक्त मानने वालों में नहीं
है अत: तुम उसे वो स्थान दे दो. तुम उत्तर दिशा में सुरक्षित स्थान में चले जाओ वहाँ तुम्हें कोई तंग नही करेगा. अपने पिता के आदेशानुसार कुबेर ने हिमालय क्षेत्र में अल्कापुरी नाम से नगर का निर्माण मानसरोवर झील के पास कर लिया और यक्षों सहित लंका से धन दौलत के साथ चला गया.

ईधर रावण ने त्रिकूटपर्वत पर लंका को बहुत सुंदर बनवाया. उसके ससुर मय नामक दानव ने जो मायवी विद्याओं में अत्यंत निपुण था, उसने लंका को तीनों लोकों मे सबसे सुंदर नगर बना दिया, सोने की पन्नी से और हीरे जवाहारात, मणिया से लंका के सभी दिवारें, खंम्भे आदि को मड दिया और जब इन की कमी महसुस हुई तो रावण, कुबेर से छीन कर ले आया. रावण ने सभी राक्षसों को लंका में रहने का निर्देश दिया और सभी को एक से एक सुंदर घर और महल दिये, फिर एक दिन कुबेर से पुष्पक विमान भी छीन लिया. राज्य स्थापना और सुंदर राजधानी बसा कर सभी असुरों को अच्छी तरह से सब सुख सुविधाएं उपलब्ध करा कर और उन्हें पूर्ण रूप से
सुरक्षित कर रावण फिर से ब्रह्मदेव की तपस्या में लग गया, उसे देख बाद में उसके भाई कुम्भकर्ण और विभीषण भी उसके साथ तपस्या में आ गये. कहते हैं की इसी बातों पर रावण के भाई कुबेर ने उसे श्राप दिया की जो सब तुमने मुझसे छिना है, वो रहेगा तुम्हारे पास भी नहीं.

इसके आगे की क्या हुआ, पढ़ें नेक्स्ट आर्टिकल में.

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