दोस्तों, बिल्कुल अनजान बंदों को कोई आइडी प्रूफ मत दें। और अपनी प्रॉपर्टी रेंट पर भी मत दें। हालाँकि किरायेदार यदि कोई गलत काम करता है तो उसका दोषी वो खुद है, लेकिन अपना कानून कुछ इस ढंग का है की मकान मालिक खमखा परेशानी में फंस सकता है।
इसलिए आपका किरायेदार क्या करता है, इसका ध्यान रखें। क्यूंकी किसी व्यक्ति ने अपनी शॉप किराये पर दी भी नहीं थी, कोई रेंट अग्रीमन्ट नहीं किया। एक दिन के लिए भी चाबी नहीं दी। भावी किरायेदार केवल एक महीने का अड्वान्स रेंट दे गया और अग्रीमन्ट ड्राफ्ट करवाने के लिए आधार की कॉपी ले गया था।
और इसी आधार के सहारे उसने किसी न किसी तरह बिजली का बिल अनलाइन या सिफारिश से निकलवा लिया।
और इन दोनों डाक्यमेन्ट की कॉपी के सहारे, उसने किसी तरह से मकान मालिक के नाम पर स्टाम्प पेपर भी हासिल कर लिया जिस पर जाली रेंट अग्रीमन्ट टाइप करवा लिया और किसी तरह से उस अग्रीमन्ट को नोटरी से अटेस्ट करवा कर ऑथेन्टकैट भी कर लिया। और उस ऑथेन्टकैटड रेंट अग्रीमन्ट के बेस पर, जीएसटी नंबर ले लिया। और उस नंबर पर किसी तरह से बिल करके करोड़ों रूपीस का रिफन्ड ऑथराइज़ करवा लिया।
और किसी तरह से एक जाली बैंक अकाउंट खुलवा कर, उसमें से वो रिफन्ड कैश भी निकलवा लिया।
यानि खाली एक आधार की कॉपी से उसने शुरू करके, कितने स्टेप (अपने देश की करप्शन के सहारे) पूरे कर लिए।
और अब यह भी हो सकता है की यदि वो बंदा न मिल पाया, तो जिसने दुकान किराये पर देने की केवल सोची, दिया नहीं, सिर्फ सोचा की देना है अगले महीने से, उसको ही फंसा दिया जाए, और बाकी सभी बच जाएँ।
वैसे मेरे ख्याल से सबसे बड़ा दोषी वो इंसान है, जिसने उसको बिना उसकी पूरी बैक ग्राउन्ड और उसकी कंपनी का स्टॉक आदि चेक किए, उसको जीएसटी नंबर अलोट कर दिया। या फिर वो, जिसने उसको मकान मालिक के नाम का स्टाम्प पेपर इशू करवाया और उस मकान मालिक के जाली साइन भी अटेस्ट करवा के दिए।
बाकी आप लोगों के विचार जानना चाहूँगा।
अभी मुझे यह नहीं मालूम की नॉर्मली तो जीएसटी अकाउंट में क्रेडिट हो जाता है। कैश रिफन्ड नहीं ले सकता कोई। तो उसने करोड़ों रूपीस, रिफन्ड में कैसे हासिल कर लिए? और इतनी बड़ी अमाउन्ट वाला बैंक अकाउंट जाली कैसे ओपन हो गया?
थैंक्स
बॉबी जोफ़न