आज कल देश मे इक लहर सी चल पड़ी है , लोकल लैंग्वेज को लेकर। इसमे हिन्दी को दोयम दर्जे पे रखा जा रहा है । हिन्दी के साथ बेगानों जैसा सलूक कीया जा रहा है ।
मैं लोकल लैंग्वेज के बिल्कुल भी विरुद्ध नहीं हु । लोकल लैंग्वेज को प्रमोट करना चाहिए , और इसमे कोई बुराई भी नहीं । लेकिन देश को ये समझना होगा , इक लोकल लैंग्वेज , सिर्फ आपके प्रदेश में ही आपकी काम आ सकती है , आपके प्रदेश की बाहर आपको इक, आसान भाषा की जरूरत है , ताकि आप दूसरों से बात कर सके । जैसे मैं पंजाब का हु , पंजाबी मेरी मात्र भाषा है , लेकिन जब मैं राजस्थान , या उत्तर परदेश जाता हु , तब वहा पञ्जाबी नहीं बोल सकता , या तमिलनाडु मे जाऊ, तो पञ्जाबी मे किसी से बात नहीं कर सकता । लेकिन अब प्रॉब्लेम ये भी है की तमिल मुझे नहीं आती , पंजाबी उनको नहीं आती, तो आपस म बात कैसे हो ?
तो अब वह इक कॉमन लैंग्वेज की जरूरत है । तो वह पर इक ऑप्शन आती है , इंग्लिश की । लेकिन इंग्लिश मेरी ठीकठाक है , थोड़ी देर के लिए उसमे बात कर सकता हु , ज्यादा लंबी बात हो गई , तो ।।??? और दूसरी बात , सामने वाले को अच्छी इंग्लिश आती हो, इस बात की क्या guarranty है ?
पर question यह है की , इंग्लिश क्यों ? क्या इंग्लिश मेरी मात्र भाषा है ,नहीं ।। क्या इंग्लिश भारत की भाषा है,नहीं।। क्या English हिन्दी से ज्यादा आसान है ,नहीं , तो फिर इंग्लिश क्यों? हिन्दी क्यों नहीं ?
हिन्दी की दूसरी या alternate language के रूप मे अपनाने मे क्या प्रॉब्लेम है ? पहली भाषा लोकल, और दूसरी हिन्दी, तीसरी इंग्लिश हो, उसमे भी कोई ऐतराज नहीं
लेकिन बहुत से इलाकों मे खास कर के , साउथ में , हिन्दी का पुरजोर विरोध हो रहा है , क्यों ? क्या हिन्दी बाहर की भाषा है , हिंदुस्तान की भाषा नहीं ???
यह ठीक है , की विदेश के लिए आपको , इंग्लिश ही चाहिए , लेकिन भाई पहले मैं अपने लोग तो देख लू, जिसने बाहर विदेश जाना हो, उसके लिए इंग्लिश ठीक है , लेकिन अगर देश में ही रहना है तो कोई तो कॉमन लैंग्वेज चाहिए , और उसके लिए हिन्दी बेस्ट ऑप्शन दिखती है
पहली भाषा :- लोकल , जैसे पंजाब ने पञ्जाबी
दूसरी भाषा :- हिन्दी , जो सारे देश मे बोली और समझी जा सकती है
तेसरी भाषा :- इंग्लिश , which is acceptable in most of countries