Copied from Whatsapp Msgs:
एक पोस्ट दिखी थी…जिसमें कुछ लोगों ने व्यंग्यात्मक शैली में प्रश्न खड़ा किया था कि …" कैसे पता कि कृष्ण का जन्म् रात को 12 बजे हुआ था ? जबकि घढ़ी का अविष्कार पीटर हेलनिन ने सन् 1520 मे किया था "
पोस्ट लेखक शायद ये कहना चाहता था कि …जब घढ़ी का आविष्कार ही नहीं हुआ था …तो ये कैसे पता चला कि श्री कृष्ण का जन्म रात 12 बजे हुआ था।
इस पोस्ट को बहुत लोगों ने शेयर किया !
अब ऐसे प्रश्नों में …वाक्य मे कुछ शब्द जबरदस्ती जोड़ …कर बनाये जाते हैं… जिन पर बहुत कम लोग ध्यान देते हैं …और यदि प्रतिउत्तर न दिया जाये …तो बहुत से लोग इसे वैज्ञानिक सोंच का नमूना मान लेते हैं !
अब सोंच रहे होंगे कि…प्रश्नवाचक वाक्य में क्या शब्द जोड़ कर प्रस्तुत किया गया है ??
तो जरा विचार करे कि…महाभारत या श्रीमदभागवत कही लिखा है…क्या कि श्री कृष्ण का जन्म रात 12 बजे हुआ था ???
पुराणों जहां भी श्री कृष्ण के जन्म् के बारे में वर्णन होगा वहाँ… मास ,पक्ष , नक्षत्र , प्रहर …मुहूर्त ,आदि का जिक्र होगा …या ग्रह नक्षत्रों की स्थित का वर्णन होगा ! परंतु कही नहीं लिखा कि .12 बजे जन्म हुआ !
मास , पक्ष, प्रहर , …मुहूर्त …घढ़ी …आदि क्या है ?? ये सब भारतीय मनीषियों द्वारा निर्धारित समय की गणना के पैमाने हैं …! समय की गणना की सबसे छोटी ईकाई भारतीय मनीषियों के अनुसार परमाणु हैं !
दो परमाणु से एक अणु बनता है । इसी तरह 'निमेष ( पलक झपकने मे लगा समय ) , ’ क्षण ( तीन निमेष = 1क्षण ) ,…काष्ठा , दण्ड…मुहूर्त आदि आते हैं !
दो मुहूर्त का एक प्रहर होता हैं… और आठ प्रहर का एक अहोरात्र ( दिन-रात्रि ) होते हैं !
घड़ी या घटी …भी भारतीय समय गणना की ईकाई है। एक दिन में 60 घड़ी या घटी होते हैं !
आपने ये वाक्य जरूर सुना होगा कि …" घड़ी , घड़ी ये क्या करते रहते हो ?"
1500 के आसपास यूरोप जो आविष्कार हुआ था …वो Timepiece या Watch का हुआ था…न कि घड़ी का ! घड़ी भारतीय काल गणना की ईकाई है। वो तो Watch या Timepiece का हिंदी में अनुवाद घड़ी कर देते हैं !
अब जहाँ पर…लिखा हो कि " मध्य रात्रि " या आधी रात …तुरंत कल्पना कर लेंगे कि …12 बजे !
अब चूकि भारतीय काल गणना की पद्धति के बारे में… ज्ञान है…नहीं । प्रहर ,मुहूर्त , घड़ी आदि संकल्पना को जानते नहीं… तो धूर्तता भरे प्रश्न उठाते ही रहते हैं !
और एक बात…कुण्डलियो मे जो ग्रहों की स्थिति का वर्णन होता हैं…उसी आधार पर समय का भी पता लगाया जा सकता हैं… जो आधुनिक काल में प्रचलित है।
कुमार पवन
Ethical dilemma के बारे में सोचा है क्या कभी ? वही चीज़ जिसे हिंदी में “धर्मसंकट” कहते हैं | जब ये तय कर पाना मुश्किल होता है कि सही क्या होगा और गलत क्या होगा | जब उचित और अनुचित में फर्क करना मुश्किल हो जाए | जब आपके पास जो विकल्प होते उनमें से कोई भी सही नहीं लग रहा होता है, सबमें कुछ ना कुछ बुराई होती ही है ऐसी स्थितियां आती हैं | कई बार एक का फायदा मतलब दुसरे का नुकसान होता है |
अगर ऐसे समझने में दिक्कत हो रही हो तो एक स्थिति की कल्पना कीजिये | सोचिये कि एक शाम आप ऑफिस से देर से छूटे हैं | रात के करीब नौ दस के बीच का वक्त है और आप पार्किंग से अपनी मोटर साइकिल लेकर सड़क तक पहुंचे ही हैं की सामने ही बस स्टॉप पर आपको तीन लोग नज़र आते हैं | इनमें पहला जो व्यक्ति है वो आपको जाना पहचाना सा दिखता है और आप स्टॉप पर गाड़ी जरा धीमी करते हैं |
आप देखते हैं कि ये व्यक्ति आपका ही एक सहकर्मी है | इसने आपके ऑफिस के कामों में अनगिनत बार आपकी मदद की है, जाने कितनी ही बार कठिनाइयों से बचाया है | अब आप उसे रात गए अकेले बस स्टॉप पर छोड़ कर तो बाइक आगे नहीं बढ़ा सकते ना ? उसे लिफ्ट देना आपको फ़र्ज़ जैसा लगेगा | बीसियों बार की मदद का बदला भी चुकाना है ! उसे छोड़कर आप आगे कैसे जा सकते हैं ? रुकना चाहिए |
लेकिन वहां रुकते ही आपको दिखता है कि स्टॉप पर दूसरी महिला एक वृद्धा है | उनकी स्थिति कुछ ख़ास अच्छी नहीं लग रही | लग रहा है काफ़ी देर से प्रतीक्षा कर रही हैं, अब आपके जैसा भला आदमी उन्हें देर रात परेशान होने कैसे छोड़ सकता है ? उनसे आपकी जान पहचान नहीं है, लेकिन माता जी कहीं छोड़ दूं आपको पूछना तो धर्म है आपका | इतना तो आपको करना ही चाहिए | अब जवान जहान सहकर्मी से पहले तो मदद पर वृद्धा का अधिकार बनता है | अब दोस्त को कैसे बिठाएंगे ?
अब आपका ध्यान जाता है कि तीसरी तो बिलकुल आपके सपनों वाली लड़की है ! बरसों से आप सोचा करते थे कि कहीं ये सचमुच होगी भी की नहीं | आज बिलकुल आँखों के सामने | आपके हेलमेट उतारते उतारते में वो कनखियों से आपकी तरफ़ देख भी लेती है | मतलब, हेल्लो कहने की कोशिश तो की ही जा सकती है | स्टैंड लगाकर आप अबतक बाइक से उतर चुके हैं |
अब आपकी समस्या शुरू होती है | है तो बाइक आपके पास ! मतलब एक ही आदमी को साथ ले सकते हैं | किसे ले जायेंगे साथ ? दोस्त को, जिसने कई बार मदद की है ? बूढी सी माताजी को स्टॉप पर छोड़ जाना भी आपके नेचर के खिलाफ़ होगा | और तीसरी जो लड़की है उसे छोड़ कर जाना तो शुद्ध मूर्खता होगी, बिलकुल नहीं किया जा सकता ऐसा | भला किन्ही अन्य लोगों (वृद्धा और मित्र) के लिए अपना भविष्य कैसे दाँव पर लगाया जाये ? किसी को छोड़ कर वापिस भी आये तो वो लड़की तबतक वहीँ रुकी होगी इसकी क्या गारंटी है ?
अब जरा हिन्दुओं के महाकाव्य महाभारत को याद कीजिये | ये ग्रन्थ बिलकुल Ethical Dilemma का ही ग्रन्थ है | कोई किरदार ना तो पूरा पुण्यात्मा है, ना ही पापी | सबने अच्छे काम किये हैं उतने ही बुरे काम भी किये | भीष्म हो, द्रोणाचार्य हो, कर्ण हो या अर्जुन, कृष्ण हों द्रौपदी हो, कुंती हो या विदुर, शकुनी हो, जरासंध हो, शिशुपाल हो कि रुक्मी ! सबने अपने अपने हिसाब से चुप्पी साधी है, जरुरत पड़ने पर कभी कभी सच के साथ भी दिखे हैं | धर्म संकट कैसा हो सकता है उसके लिए, और कुछ भी पूरा सही या पूरा गलत नहीं होता ये समझने के लिए महाभारत पढ़ना चाहिए |
अगर कहीं आप अभी भी सोच रहे हैं कि बाइक पर किसे लिफ्ट दी जाए तो उसका जवाब आसान है | अपने मित्र / सहकर्मी को अपने बाइक की चाभी दे दीजिये और उसे माताजी को घर छोड़ देने कह दीजिये | अब आप आराम से बस स्टॉप पर अपनी संभावित संगिनी के साथ बस का इंतज़ार कर सकते हैं | दिल्ली में जिस बस का इंतज़ार करो, बस, वो ही बस नहीं आती, इसलिए किस्मत अच्छी हुई तो बस देर से ही आएगी |
बाकी के लिए महाभारत पढ़िए भाई, हर धर्म संकट में हम थोड़ी ना काम आयेंगे !
आनन्द कुमार