Minor ommitance in a judical order, cost 15 years of prison to a convict

हिन्दुस्तानी अदालतों की यह हालत हुई पड़ी है की एक जज किसी कान्विक्ट (दोषी) के फैसले में यह क्लेयर करना भूल गया की उसकी सभी सजायें एक साथ चलेंगी। और जेल प्रशासन मुजरिम को छोड़ने को इसलिए तयार नहीं था की यह बात साफ साफ़ नहीं लिखी हुई थी। वो कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे।

और मजा देखिए की सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, जस्टिस वाई चंद्रचूड़ यह बात कितने मजे से अपनी, 16 दिसम्बर 2002 में दी गई, एक स्पीच में बता रहे थे की सुप्रीम कोर्ट के judges को कितनी मेहनत करनी पड़ती है, कितना पढ़ना पड़ता है, वरना अदालतों में ऐसी गलतियाँ मुजरिम को 15 साल की अतिरिक्त सजा भी दिला सकतीं हैं।

जिस केस की हम बात कर रहे हैं, वो दिसम्बर 2022 का हापुर जिले के व्यक्ति इकराम नाम से संभनधित है, जो की एक पावर या उसकी तारों की चोरी के मामले में 3 साल की सजा काट चुका था। और jail अधिकारी उसकी सजा को 18 साल की मान रहे थे, क्यूंकी कोर्ट ने ‘सजा एक साथ चलेंगी’ लाइंस साफ साफ नहीं लिखीं थीं। आप वो केस के बारे में अधिक यहाँ, और हिन्दी में यहाँ, पर पढ़ सकते हैं।

इस केस में, चीफ जस्टिस ने आगे बताया की, हाई कोर्ट ने भी इस गलत्ति को नहीं सुधारा। और सुप्रीम कोर्ट इतनी अधिक काबिल है, की उन्होंने उस बंदे को 3 साल की उसकी जेन्युइन सज़ा मिलने के बाद ही छुड़वा दिया, जब उनका ध्यान उस केस में डाली गई एक अपील ने खींचा।

अब आप देखिए की जस्टिस साहब खुद की तारीफ करते हुए यह भूल गए की वो भारतीय अदालतों की कितनी बड़ी कमी को अनजाने में स्वीकार कर रहे हैं की किसी एक (या अधिक) जजस की लापरवाही, किसी का जीवन तक निगल सकती है।

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