My Article published in a small publication at the time of Farmers agitation

2020 के किसान आंदोलन के दोरान मेरा यह लेख कहीं छपा था:

धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का। इस कहावत के मायने आज की राजनीति में खूब ढल रहे हैं।

किसानों ने पंजाब में बहुत से धंधे, सड़कें, व्यापार बंद करवा दिए हैं, और दूसरी तरफ सीएम उनको सरकारी नोकरीयों से नवाज़ रहा है। की आप शहरों में व्यापारियों के व्यापार जीतने मर्जी बंद करवायो, पंजाब काँग्रेस गवर्नमेंट आपके साथ है।

लेकिन फिर भी, दूसरी तरफ डकैत कह रहा है की अब इलेक्शन के नजदीक पंजाब काँग्रेस के सीएम के ऐसे ढोंग को वो लोग कोई अच्छी नजर से नहीं देखते। अब चाहे वो कुछ कर ले, उन (काँग्रेस) की ओकात उन (डकैत) को मालूम है।

तो पंजाब काँग्रेस/सीएम व्यापारियों न वायापरियों के हक में हुआ और न ही किसानों के हक में? घर का या घाट का?

वक्त के तीखे दांतों ने जब काँग्रेस को काटना शुरू किया, तो सचमुच बड़ा जोर से काट रहे हैं। इनके आगे अब कुआँ और पीछे खाई है।

पंजाब में पालिटिशनस को लगता है की व्यापारी को चाहे कितनी ही चोट होने दो, पर किसान को पलूस कर रखो। पर इनको जल्द ही पता चल जाएगा की बतख जो ऊपर से शान्त तैरती दिखती है, पानी के नीचे उसके पाँव पूरे गतिशील होते हैं।

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