मछली ने पानी से कहा की तुम्हें मेरे आँसू नहीं दिखते, क्यूंकी मैं तुम्हारे अंदर हूँ। तो पानी ने मछली को जबाब दिया की मैं तुमहरे आँसू फ़ील कर सकता हूँ, क्यूंकी मैं तुम्हारे अंदर हूँ। तो दोस्तों कुदरत कुछ इसी तरीके से हमारे अंदर, हमारी ज़िंदगियों के अंदर घुसी हुई है की उसको कोई माई का लाल अलग नहीं कर सकता है।
लेकिन फिर भी, कुछ लोग, या किसान, जिस जानवर को पहले परिवार के मेम्बर की तरह समझते हैं, उससे प्यार देते और लेते हैं। और वो भी एक माँ की तरह अपना सब कुछ तुम्हें दे देता है। फिर वो अपने माँ समान उस पशु का, का फ़ायदा उठा कर, बूढ़ी या फुनडेर हो चुकी गाय को सड़कों पर उनको मरने कटने के लिए क्यूँ छोड़ देते हो? जबकि कानूनन कोई बंदा एक छोटा सी रेत की ढेरी भी, अपने खुद के घर के बाहर भी नहीं छोड़ सकता। तो फिर गाय जिसका बूढ़ी होने के बाद भी, उसका पेशाब, गोबर उनके मरने के दिन तक बिकता है। तो फिर उसका दूध खत्म होने के बाद, तुम उसको सहरों की सड़कों पर मरने मारने के लिए क्यूँ और कैसे छोड़ आते हो? क्या तुम 1-2 टोकरे तुड़ी के नहीं डाल सकते यार? इतना ज्यादा स्वार्थ जाग चुका है? हनलंकी किसान का यही स्वार्थ किसान को कंगाल कर चुका है। जिन गायों को लोग जबरदस्ती अमानवीय हालातों में बूचड़खानों तक ले जाते हैं, और फिर उन्ही अमानवीय तरीकों से काट देते हैं, तो उन बेजूबानों का श्राप लगता है आपको। या जब वो खुद एक्सीडेंट में कुर्बान हो जाती हैं और उनके साथ किसी की माँ, किसी का बाप, या किसी का जवान बेटा उसके सामने मर जाता है, तो उनकी हाय लगती है आपको। वरना यूं ही नहीं कंगाल हुए आप। गायों का झुंड अगर कुछ महीने किसी बंजर जमीन पर खड़े खड़े अपना गोबर करता रहे, तो वो बंजर जमीन भी हरी हो जाती है। जबकि भएन्स से ऐसा नहीं होता। सोचिए कैसे ज्ञानी रहे होंगे हमारे पुरखे जो उन्होंने यह चीजें शुरू में ही पहचानीं?
पहले के जमाने में थोड़ी सी महनत करते थे, तो किसान के कोठे भरे रहते थे। अब वो टीके लगा लगा कर जानवरों को पागल कर चुका है। दवाईयां फेंक फेंक कर जमीनों को बंजर, और लोगों को कैंसर से भर चुका है। फिर भी उसके खुद घर में खुशाली नहीं आई, गायब हो गई है। क्यूँ?
अरे, अगर मोने गाय का बचाव करना छोड़ भी दें। लेकिन क्या किसान लोग अपने मित्र जानवरों के बिना, जी पाएंगे?
और इधर, 10 के 10 गुरु भगवान गोविंद के भजन गाते रहे। उनके दोहे गाते रहे। पार्वती माँ, शिव भगवान की तारीफ में लिखते रहे। और आज कुछ लोग कहते हैं की वो हरी नारायण कोई और थे, गोविंद कोई और थे, कृशन कोई और थे जो ग्रंथ साहिब में महिमा मंडित किए गए हैं, वो कोई और थे? आज कुछ लोग कहते हैं की जो सिख पंथ से जुड़े जो डेरे गायियों को हरा डालते हैं, वो हमारी मर्यादा से बाहर हो गए? कौन हो वो कुछ लोग? क्यूँ हर समुदाय में यह कुछ लोग दो भाईयों को अलग अलग माँ बाप के पुत्र साबित करने में लगे हुए हैं? पगड़ी धारी और मोने, एक ही धारा से निकले 2 सगे भाई हैं। लेकिन कुछ लोगों को लगता है की यह कायर भाई है, जो जान भूजह कर बहादुर भाई को ज्यादा ही भाई भाई पुकारता है। लेकिन जिस दिन यह कायर भाई ने पुकारना छोड़ दिया, उस दिन देखना इस बहादुर भाई की हालत दुनिया में क्या रह जाएगी।
-------7. रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाए, टूटे तो फिर जुड़े नहीं, जुड़े तो गांठ पड़ जाए। भिंडरवाले ने गांठ तो डाल दी है। अब बिल्कुल अलग मत करो। याद रखना, जो बेटा अपने माँ बाप से अलग होने को पहले दोड़ता है, क्या कभी तुमने देखा है की वो अपनी जॉइन्ट फॅमिली से अधिक तरक्की कर गया हो? कभी भी नहीं। और फिर वो यह कम्प्लैन्ट करते फिरते हैं की माँ बाप ने हिस्से में ही उनको कम दिया।
लेकिन कुछ लोगों का स्वार्थ इन दोनों को अलग करके टुकड़े करके, और फिर एक छोटे से भूमि के टुकड़े का हीरो बनना ही मकसद है उनका।
उनको कैसे कैसे अलग करते हैं यह बात मुझे कल एक टेलीफोन काल पर बठिंडा के योग टीचर संदीप सिंह, जो मोने-सिख फॅमिली से हैं शायद, ने बताई है। बठिंडा के किले वाले गुरुद्वारे में चनों का भोग मिलता था 10-15 वर्ष पहले तक, लेकिन sgpc को लगा की यह तो हिंदुओं की रीत है, और इससे हिन्दू सिख एक लगने लग जाते हैं। तो वो कहते की बंद करो हिंदुओं की तरह चना बनाना, कराह प्रसाद बनाया करो। क्या है ये?
— And now some idiots, who try to compare apples with oranges, or honey with butter, जो गुरुओं की, भगवान गोविंद कृष्ण के गाय प्यार को भूल कर, कहते हैं की अगर गाय माता है तो बैल को पिता बना लो। ऐसे ही कुछ लोग कहने लगेंगे की कच्छे की जगह पेंट को रख लो। रख लेंगे हम? नहीं रख सकते। जो पाँच ककरों में कच्छे की जगह है, वो कच्छे की रहेगी। वे हमारे लिए श्रद्धा का विषय हैं, तर्क का नहीं। जो गाय की जगह है वो गाय की रहेगी। न बैल, गाय की जगह ले सकता है, न पेंट, कच्छे की। इन चीजों का जान भूजह कर मजाक उड़ाने वाले को समझ की कमी है।
और अब कुछ मोने लोगों की बेबकोऑफ़ियाँ। भाई, अगर गाय माँ की जगह है। और उसका दूध, उसका गोबर उसका पेशाब सब काम में आता है, तो इसका मतलब यह नहीं है की कल को कोई गाय के गोबर को टट्टी कहे तो तुम उसके पीछे लठ लेकर पड़ जाओ। बात को गाय तक ही रहने दो। उसको बढ़ाओ मत। जैसे कुछ लोग ग्रंथ साहिब को पूजते पूजते एरोप्लेन की उन सीटस को भी पूजने लग गए, जिस सीट पर रख कर ग्रंथ साहिब को रख कर इंडिया से usa ले जाएगा गया। अपनी श्रद्धा को बेबकूफी की सीमा में मत ले जाओ भाई।
गाय का पेशाब तो दवा का काम करता है। 100% सही है। मैं खुद पीता हूँ। देश के पीएम मोरार जी देसाई, इतनी ऊंची सोच के मालिक अपना खुद का पेशाब पीते थे, न ही कोई यह छिपाने वाली बात है, न ही कोई छिपाता है। खुले आम बिकता है। पूरा बिजनस है इसका। 100 तरह की पेट की बीमारियों को ठीक करता है। तर्क शक्ति को बढ़ाता है। गाय का दूध दिमाग को पेना करता है, जबकि भएन्स का दूध दिमाग को मोटा करता है, सबको मालूम है। जहां तक की जो मुस्लिम गाय को काटते हैं, वो भी यह सविकार करते हैं की भएन्स का दूध शारीरक और दिमागी दोनों तरह की चर्बी को बढ़ाता है और गाय का दूध दोनों तरह की चर्बी को कम करता है।
लेकिन अगर यह बीमारियाँ ठीक करता है, तो इसको दवा ही तो मानो। श्रद्धा का रूप क्यूँ देते हो? और कोई बंदा इस पर बेबकूफी भरा गीत गा भी देता है, तो तुम अगर इस बात पर उसके पीछे पड़ गए तो तुम उससे भी बड़े बेबकूफ़ हो। फिर तो यह हुआ की तुम पीना भी चाहते हो, और कहलवाना भी नहीं चाहते कि तुम पीते हो? तो इसका मतलब तुम्हें पीते हुए शर्म आती है। तो फिर पीते ही क्यूँ हो? ऐसा काम करते ही क्यूँ हो जो तुम्हें चोरी छिपे करना पड़े? कल को कोई बंदा डिस्परिन की गोली पर गीत गा दे की यह फलानी कोम तो डिस्परिन की गोली खाने वाली कॉम है। क्या तब भी तुम उसके यूं ही पीछे पड़ जाओगे?
– Please, Persist in what must be done, at the same time, resist in what must not be done.
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अरे भाई, हो सकता है डिस्परिन की गोली ने उसका दिमाग हिला दिया हो। पेशाब ने उसके किसी प्रिय जन को पागल कर दिया हो। तो वो तो पेशाब को कोसेगा ही? तुम क्यूँ और किस अधिकार से उसके पीछे पड़ोगे? कौन स कानून कहता है की कोई बंदा किसी दवा को कोस नहीं सकता? और अगर तुम कहते हो की वो दवा नहीं है, गाय की तरह ही पूजनीय है, फिर तुम और गूढ मूर्खता की और बढ़ रहे हो, जैसे की ग्रंथ साहिब जिस प्लेन पर रख कर ले जाए गए, उसको पूजने वाला बढ़ रहा है। और ध्यान देना, ऐसा वही बंदा करेगा, जिसको उसके अंदर लिखीं शिक्षा समझ में नहीं आती हैं, वो उसको कभी भी समझ नहीं आई होंगी।
– जिसको किताब समझ में नहीं आई तो वो फिर किताब की जिल्द को ही तो पूजेगा।
अंत में, जो भी समुदाय, चाहे पगड़ी धारी, चाहे मोने, जो तुम्हारी श्रद्धा बन चुके हैं, उनेमिन से कई चीजें तुम्हारे गुरुयों देवी देवताओं ने चाहा भी नहीं था, लेकिन तुमने उनको पकड़ लिया। जैसे मूर्तियों को भोजन खिलाने की, सुलाने की प्रथा, या निशान साहिब को भी पूजने की प्रथा। लेकिन चलो, बना लिया। लेकिन भाई, इन चीजों को और मत बढ़ाओ। उलटे इनको कम करने की कोशिश करो। और इनके पीछे जो असली शिक्षा थी। जो शकसीयत थीं, जो मकसद थे, उन पर चलने की चेष्टा करो।
कई kttad लोग कमेन्ट करते हैं की मैं इस बात पर उनको शिक्षा क्यूँ दे रहा हूँ? तो भाई बात यह है की तुम्हारी बढ़ती बेबकोऑफ़ियाँ, हम पर भी असर डालने लग गईं। हम जो कटड़ नही भी बनना चाहते, उनके जीवन भी इन बातों के कारण डिस्टर्ब हो रहे हैं। अगर सार्थक बातें नहीं हैं करने को, तो निरर्थक करनी जरूरी तो नहीं हैं?
और जो लोग समझते हैं की सच में कर्म कांड से निकलना चाहिए, तर्क पर चलना चाहिए, उनको मैं कहूँगा की अगर वो मोने हैं तो पहले अपने खुद के कर्म कांड से निकलें। और अगर वो पगड़ी धारी हैं और समझते हैं की उनके समुदाय में कोई कर्म कांड नहीं हैं तो नेवजेलण्ड का हार्नेक सिंह का रेडियो सुन लें। जो तर्क पर, सबूत के साथ हजारों गलतियाँ साबित कर चुका है इस समुदाय में।
और बावे जैसे बंदे के लिए यह संदेश है की पंजाब में आज वो वक़्त बन चुका है भाई, की तुम यदि तुम किसी समुदाय की कमी निकालना चाह रहे हो, और तुम दिल से सच्चे भी हो, वो सच में बहम भ्रम ही हैं, लेकिन इसके बाबजऊद, तुम्हें उसके बराबर की ही कमी अपने खुद के समुदाय में भी निकालनी होगी। अगर तुमने चालाकी से, या अपनी कम अक्ली की बजह से, पलड़ा जरा स भी एक समुदाय की और ज्यादा झुका दिया, तो शुक्रिया भिंडरवाले का, जिसने अपने स्वार्थ के चलते, मनों में इतने से तो फरक पैदा हो ही गए हैं, की वो एक समुदाय छड़ी लेकर तुम्हारे पीछे पड़ ही जाएगा। अगर तुममें इतनी समझ नहीं है की बिल्कुल बराबर तोल सको, तो फिर किसी भी समुदाय की कमी पब्लिक्ली निकालना बंद करना ही पड़ेगा तुम्हें।
Don’t bite more than you can chew.
क्यूंकी अब, 1980 से पहले वाले दिन नहीं रहे।