बहुत लोग मुझसे पूछते हैं की मैं अनलाइन सोशल प्लाटफॉर्म्स पर ज्यादातर हिन्दी में क्यूँ बोलता हूँ? इसके नीचे दिए गए कुछ कारण हैं।
- जब हम कोई बात सारी पब्लिक को कहना चाहते हैं, तो हमारी कोशिश होती है की वो बात जितनी ज्यादा बड़ी ऑडियंस तक पहुँच सके, उतना ही अच्छा। और यह बात में किसी को कोई शक नहीं होगा, की पञ्जाबी एक क्षेत्रीय भाषा है, जबकि हिन्दी (अनफिशल) राष्ट्रीय भाषा है। हिन्दी की पहुँच, पञ्जाबी से अधिक है। और यदि मेरी ऑडियंस टारगेट इन्टरनैशनल होता तो निश्चित ही हिन्दी की जगह इंग्लिश को पहल देनी पड़ती।
- दूसरा कारण है, सुविधा। मुझे पञ्जाबी की बजाय हिन्दी और इंग्लिश में टाइप करना बहुत अधिक सुविधा जनक है। क्यूंकी पञ्जाबी के टायपिंग टूल अभी उतने अधिक डिवेलप नहीं हुए, जितने हिन्दी के हो चुके हैं।
- और तीसरा कारण है की मेरी स्कूलिंग इंग्लिश या हिन्दी मीडीअम में हुई है। जिस कारण पञ्जाबी लिखने में अधिक मिस्टैक होने के चांसस रहते हैं। बजाय हिन्दी या इंग्लिश के।
- और चौथा कारण है की मुझे जितने गलियाँ निकालने वाले कमेन्ट मिलते हैं, वो सब पञ्जाबी बोलने वाले होते हैं। जबकि हिन्दी बोलने वाले यदि मेरा विरोध भी करते हैं, तो उनकी भाषा सयम वाली होती है। जिस कारण कहीं न कहीं यह भी मन में जाता है की पञ्जाबी कोम दिन ब दिन असभ्य होती जाती है।
- और एक कारण यह भी है थोड़ा सा की हम घर में भी ज्यादातर हिन्दी ही बोलते हैं, तो वही आदत भी कहीं न कहीं जुड़ी रहती है।
उम्मीद है की मैं आपको संतुष्ट कर पाया हूँगा।
बॉबी जोफ़न
#hindi
#vs
#punjabi
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main tuhade ਪੁਆਇੰਟ ਨਾਲ ਸਹਿਮਤ ਨਾਈ sir ਤੁਸੀ ਇਕ ਪੁਆਇੰਟ ਲਿਖਿਆ k ਪੰਜਾਬੀ ਲੋਕ ਗਾਲਾਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਕੱਢ de e ਫਿਰ mere ਹਿਸਾਬ ਨਾਲ ਤੁਸੀ ਪੰਜਾਬ ਤੋਂ ਬਹਾਰ ਕਿਸੇ ਨਾਲ ਡੀਲ ਹੀ ਨਈ ਕਰ ਰਹੇ ਜਿੰਨੀ ਘਟੀਆ ਲੈਂਗੂਏਜ ਬਿਹਾਰ ਯੂਪੀ ਵਾਲੇ ਕਰਦੇ ਹੈ syad ਹੀ ਕੋਈ ਕਰਦਾ ਹੋਵੇਗਾ ਹਾਂ ਇਹ ਗੱਲ ਨਾਲ ਸਹਿਮਤ ਹਾਂ ਤੁਸੀ ਘਰ ਹਿੰਦੀ ਬੋਲਦੇ ਹੋ ਇਸ ਕਰਕੇ ਤੁਸੀ use ਕਰਦੇ ਹੋ ਪਰ ਪੰਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਬਹੁਤ ਪਯਾਰੀ ਹੈ ਉਹ ਅਲੱਗ ਗੱਲ ਏ ਕੋਈ ਆਪਣੀ ਮਾਂ ਬੋਲੀ ਨੂੰ ਪਿਆਰ ਕਿੰਨਾ ਕ ਕਰਦਾ ਹੈ
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आप उस एक पॉइंट को छोड़ कर, क्या बाकी के पॉइंटस पर सहमत हैं?
उन पर आपने कोई जबाब ही नहीं दिया।
सभी पॉइंटस पर पॉइंट टू पॉइंट जबाब दीजिए प्लीज।
ਸਕੂਲਿੰਗ ਵਾਲੀ ਗੱਲ ਸਹੀ ਹੈ ਬਚਪਨ ਚ ਜੋ ਵੀ ਮੀਡੀਅਮ ਆਪਾਂ ਨੂੰ ਸਿਖਾਯਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਪਣਾ ਰੁਜਾਣ ਉਦਰ ਹੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਪਾਰ ਗੱਲ ਕਹਿ ਰਹੇ ਹੋ ਕਿ ਹਿੰਦੀ ਚ ਜਵਾਬ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਸਯਾਮ ਬਰਤਦੇ ਨੇ ਇਹ ਤੁਹਾਡਾ ਵਿਚਾਰ ਹੈ ਅਜਿਹਾ ਹੁੰਦਾ ਤਾ ਯੂਪੀ ਬਿਹਾਰ ਵਾਲੇ ਐਨੇ rude ਲੈਂਗੂਏਜ use ਕਰਦੇ ਨੇ ਤੌਬਾ ਤੌਬਾ
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Ek gal hor sir tuc tamilnadu Kerala West Bengal Andhra chle jau us Side ja english ja oh apni local language e prefer krde e they don’t speak in Hindi
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आपने अभी तक एक ही पॉइंट काटा है कि Punjabi बोलने वाले ज़्यादा लो लेवल की भाषा बोलते हैं।
और कोई पॉइंट आपने नहीं काटा।
इस पॉइंट में भी आपकी बात सही नहीं है। आप कह रहे हैं कि up बिहार वाले ज़्यादा गालियाँ निकालते हैं। लेकिन मुझे उनसे क्या लेना? मुझे तो उनसे मतलब है जो मुझे गालियाँ निकालते हैं, kadba बोलते हैं (लेकिन argument नहीँ देते कोई)
इससे मेरे पॉइंट प़र कोई फर्क़ नहीं पड़ता है। क्यूँकी उन राज्यों को छोड़ भी दें, तो भी हिंदी की ऑडियंस, Punjabi की ऑडियंस से अधिक है।
जो लोग कल्चर को सेव करना चाहते हैं, मैं उनकी भावनयों की कद्र करता हूँ। मैं खुद भी पुरानी बातों का बहुत शोकीन हूँ।
लेकिन कल्चर को सेव करना, और जमाने के साथ चलना, और अपने मकसद के लिए उचित रास्ते का चुनाव करना, इन सब के बीच बैलन्स बहुत ही जरूरी है। अति किसी भी चीज की बुरी है। और बैलन्स ही सब कुछ है।
उन्ही चीजों के मद्दे नजर, दुनिया में धीरे धीरे छोटी भाषाएं मर रही हैं। हिन्दी के मुकाबले पञ्जाबी मर रही है, और इंग्लिश के मुकाबले हिन्दी।
इसी संधरभ में, चाइना ने बहुत देर तक खुद के देश में इंटरनेट/कॉमपुटर्स को इंग्लिश में नहीं होने दिया। सब कुछ चाइनीज में।
लेकिन अंतत, कुछ वर्ष पहले, उनको हथियार फेंकने पड़े, और इंग्लिश इंटरनेट को अपने गेट खोलने ही पड़े। यदि वो ऐसा न करते, तो अंतत, एक भाषा के चलते ही वो दुनिया में पीछे रह जाते।
अगर आप सचमुच अपनी मा बोली की सेंवा करना चाहते हैं।सबसे पहले अपने बच्चो को सरकारी स्कूलों में पढ़ाए।इंग्लिश मीडियम स्कूल में addmission nahi करवाए।
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aise ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਲੋਜਿਕ ਹੈ ਬਾਕੀ ਰਹੀ govt ਸਕੂਲ ਦੀ ਗੱਲ ਜਾ ਪੰਜਾਬੀ ਦੀ ਉਹ ਬਚੇ ਨੂੰ ਉਸਦੇ ਪਰਿਵਾਰ ਚੋ ਮਿਲਦੇ ਨੇ ਤੇ ਸਾਡੇ ਪਰਿਵਾਰ ਦੇ ਬੱਚੇ ਬੱਚੇ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬੀ ਲਿਖਣੀ ਤੇ ਬੋਲਣੀ ਆਉਂਦੀ ਹੈ
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हरजित जी, एक साइड पर हम दूसरों को कह रहे हैं की वो हिन्दी में बात न करके पञ्जाबी अपनाएं।
और दूसरी साइड में उन्ही पेरन्टस के बच्चे पञ्जाबी मीडीअम में न पढ़ कर हिन्दी या इंग्लिश मीडीअम में पढ़ें (मुझे यकीन है की किसी शहरी का बच्चा पञ्जाबी मीडीअम में नहीं पढ़ता होगा)।
तो फिर इसका क्या लॉजिक? जब हम एक साइड पे दूसरे को रोक रहे हैं हिन्दी के इस्तेमाल को। तो खुद के बच्चे को क्यूँ तयार कर रहे हैं हिन्दी/इंग्लिश के लिए?