बचपन में जब रामायण और महाभारत की कथा सुनी तो लगा कि भगवान लोग की कहानी है, कुछ अलग तो होगी ही। दादी ने बताया था कि सीता घड़े से निकली , तो दांतो तले उंगली दबा ली। फिर थोड़े बड़े होने पर लगा कि ये सब कहानियां बकवास हैं।
लेकिन जब medical के पहले साल का कोर्स पढ़ा और उसमें संस्कृत में वेदों के उन सूत्रों को पढ़ा, जो किसी फिजिक्स या केमिस्ट्री की किताब के अनुवाद जैसे लगते थे । ( मेरे फिज़िक्स और केमिस्ट्री के basic ज्ञान पर कम से कम हरदोई में मेरे साथियो, seniors और juniors को शक नहीं होगा ) , तब मुझे लगा कि वेद , पुराण , रामायण और महाभारत केवल कपोल कल्पना नहीं है ।
फिर जब medical last year में gynaecology and obstetrics पढ़ी और उसमें post graduate किया , तो समझ आया कि test tube बेबी का मतलब रसायन विज्ञान वाली परखनली में बच्चा विकसित करना नहीं, बल्कि मानव शरीर के बाहर भ्रूण को विकसित करने की प्रक्रिया से है । और कसम से, उस वक़्त जो पहली बात दिमाग में आयी, वो यही थी कि शायद सीता के जन्म की कहानी कपोल कल्पना नहीं है।
अगले ही chapter में surrogacy के बारे में पढ़ा, तो मुझे रोहिणी के गर्भ से बलराम के जन्म का उदाहरण याद आया और फिर थोड़ा और अध्ययन करने के बाद मुझे लगा कि एक ही भ्रूण को सौ पात्रों में विकसित करके कौरवों के जन्म की बात भी सम्भव है।
इतना ही नहीं, पति के infertile या मृत होने पर ’ नियोग’ द्वारा सन्तान को जन्म देने की पौराणिक बात भी सही लगने लगी, जब IUI की प्रक्रिया द्वारा कितनो को conceive करते देखा।
धीरे धीरे लगने लगा कि रामायण और महाभारत केवल काव्य नहीं, कुछ सत्य है ।
वक़्त के साथ समझ आया कि ऋषि का मतलब दाढ़ी बढ़ाकर मन्त्र पढ़ने वाला नहीं, बल्कि scientist, गुरु और चिकित्सक होता था। तब लगा कि वेदव्यास शायद सबसे बड़े scientist रहे होंगे।
फिर जब सुश्रुत के द्वारा वर्णित surgical instruments , surgical procedures, fractures, प्रसव विज्ञान को जाना, तब समझ आया कि प्राचीन भारत इसलिए विश्व गुरु नहीं था, कि यहां चमत्कार करने वाले साधु थे, अपितु इसलिए था कि यहां अपार ज्ञान विज्ञान था ।
और भी बहुत कुछ समझ आया समय के साथ, जो सब कुछ यहां लिखना सम्भव ही नहीं lll