दोस्तो हरेक बैंक अपने ग्राहक को खाता मैंटेन रखने के लिए कुछ निश्चित रकम अपने खाते में रखने के लिए कहता है। अगर हम वो मिनिमम रकम अपने एकाउंट में नही रख पाते तो बैंक जुर्माना लगा देता है। मेरी ये रॉय है कि अगर किसी बैंक के ATM में पैसा नही हो या वो ATM खराब हो तो क्या उस बैंक पर जुर्माना नहीं लगना चाहिए। आपके क्या विचार हैं?
मैं राजेश जी आपसे सहमत नहीं हूँ।
क्यूंकी बैंक एक बिज़नस की तरह हैं। (मनमोहन सिंह ने इकॉनमी को लिबेरलाईज़ किया ही इसीलिए था की हरेक बिज़नस अपने दम पर खुद चले)।
और जो भी बिज़नस अपने दम पर चलेगा, उसको अपनी सर्विसेस की फ़ीस निर्धारित करने का हक है।
अगर हमें किसी बैंक के मिनिमम बैलेन्स नहीं रखने तो हम कोई ऐसा बैंक भी चुन सकते हैं, जिसमें मिनिमम बैलेन्स न के बराबर हैं (जैसे की cooperative बंक्स)। लेकिन अगर हम सुविधाएं तो चाहते हैं टॉप कमर्शियल बंक्स जैसी, की एसी लगे हों, एनिवेयर बैंकिंग आदि हो, तो फिर उसका मोल भी हमें चुकाना पड़ेगा।
यह लगभग उसी तरह से है की अगर हमने बढ़िया कोल्ड ड्रिंक पीना है तो पैसे उस हिसाब के, अगर unbranded पी लेंगे (टैस्ट उसका भी लगभग वही है) तो थोड़ा सस्ते में भी मिल जाएगा।
और हाँ, लास्ट बात:
अगर कोई गरीब बंदा है, जिसने कोई खास बैंकिंग नहीं करनी, सिर्फ कभी कभार ही जरूरत पड़ती है पैसे जमा करवाने की या निकल्वने की, तो उसका जन धन खाता फ्री में, बिना किसी मिनिमम बैलेन्स के भी खुलता है।
ये तो एक तरफा मनमानी वाली बात हो गयी न सर। मतलब अगर बैंक की तरफ से कोई गलती हो तो उसे कोई सज़ा या जुर्माना नहीं। अपने बठिंडा में ही देख लें तो कई ATM ऐसे है हैं जो कई कई दिनों से बंद पड़े रहते हैं क्या ये बैंक की गलती नही।एक एटीएम एक ब्रांच का काम करता है आजकल।
मेरे ख्याल से ओपेन इकॉनमी में अगर कोई भी बिज़नस, पैसे लेकर, अपनी फीस के अनुरूप सर्विस नहीं दे पाता है तो उसकी सज़ा येही है की उसके कस्टमर टूट के दूसरे किसी और competitor के पास जा सकते हैं।
दूसरे, कस्टमर पहले बैंक के ombudsman के पास इसकी शिकायत और नुकसान भरपाई की लिए अप्लाई कर सकता है। अगर वहाँ से satisfy न हो तो कोंसुमर कोर्ट। यानि इसके जुर्माने के प्रावधान्न पहले से हैं, बस लोग उन क़ानूनों का फाइदा नहीं उठाते क्यूंकी किसी के पास इतनी कानूनी लड़ाई लड़ने का टाइम नहीं है।