नमस्कार और सत श्री अकाल का फ़र्क

जब हम छोटे होते थे और पंजाब में अभी भिण्ड्र्वाले ने खालिस्तान की माँग नहीं उठाई थी, कोई नमसकर करता या सत श्री अकाल करता, किसी को कोई फर्क नहीं था। बल्कि लोग सामने वाले को देख कर अभिवादन करना ज्यादा अच्छा समझते थे। यानी हिन्दू अगर सरदार बंदे से टकरा जाता था, तो वो सरदार जी को इज्ज़त देने के लिए ‘सत श्री अकाल’ बोलता था। और अगर सरदार पहले बोल पड़ता था, तो वो हिन्दू को ‘नमसकर’ बोलता था। यानी एक दूसरे को इज्ज़त देते थे।

लेकिन आज इसके उलट है। और हरेक कहता है की मेरा समुदाय बड़ा है। और मैं खुद के समुदाय वाली ही भाषा बोलूँगा।

मैं खुद आज से एक वर्ष पहले तक, सरदार बंदे को ‘सत श्री अकाल’ बोलता था, और हिन्दू बंदे को ‘नमस्कार’। लेकिन जब मैंने नोट किया की मैं दूसरे को इज्ज़त देना चाह रहा हूँ, लेकिन बहुत लोग खुद के समुदाय को ज्यादा ऊंचा समझने लग गए, देश से भी ऊंचा। तो मैंने ऐसा करना बंद कर दिया।

जब से देश के अलग अलग टुकड़े करने वाली ताक़तें मजबूत होती जा रही हैं। मैं अब किसी भी क्षेत्रीय भी अभिवादन के हक़ में नहीं रहा। क्यूँ देश को अलग अलग भाषयों, अभिवादनों, या ढंगों में बांटें?

सारे देश का राष्ट्रिय अभिवादन शुरू से ही ‘नमसकर’ रहा है। और ‘सिख’ कोम तो पहले हिन्दू ही थी। हिंदुस में से ही निकले हैं। यहाँ तक की हिंदुस्तानी मुस्लिम भी पहले हिन्दू ही हैं। हिन्दू ही थे। और हिंदुस्तान की माँ बोली संस्कृत में से ‘नम’ +’ स्कारम’ यानी ‘नमसकर’ निकला है। इसलिए मैं देश की, राष्ट्र की एकता को देखते हुए, ‘नमसकर’ का पक्षधर हूँ।

लेकिन अगर कोई बंदा कहता है की ‘नमसकर’ हिन्दू समुदाय का है, और मैं इसको नहीं बोलूँगा। तो वो ‘जय हिन्द’ तो बोल ही सकता है। लेकिन अगर उसको ‘हिन्द’ की जय से भी इंकार है। तो वो मेरे देश का हितकर नहीं है। उसको मैं अभिवादन करने योग्य ही नहीं मानता।

बॉबी ज़ोफन