27/9/21 को फार्मर्स के लीडरस ने पूरे देश में बंद बुलाया था। वो एक सोमवार का दिन था। और इतवार के बाद सभी व्यापारी वर्ग के लोग, दिहाड़ी दार लोग अपने काम पर जाकर अपनी आजीविका कमाना चाहते हैं।
लेकिन जब किसानों ने बंद बुला दिया तो शहर में लोग डर जाते हैं की यदि भीड़ इकठी होकर आ गई (चाहे उसमें किसान हों या कोई और, यह कौन पहचाने? और पहचान कर हो भी क्या जाएगा?) तो उनके यहाँ तोड़ फोड़ भी कर सकती है, और उनकी पिटाई भी कर सकती है, उनके कपड़े फाड़ कर उनको नंगा भी कर सकती है। यह सोच कर वो लोग दुकाने नहीं खोल पाते।
और शाम को टीवी पर आ जाता है की बंद कामयाब रहा।
लेकिन इस पर मैंने अपने विचार रखे की यदि पंजाब पुलिस (जो की मैं और मेरे जैसे समाज के दूसरे लोग) बिल्कुल निक्कामी ही मानते हैं, कुछ भी नहीं करती। वरना उसका फर्ज बनता है की यदि कोई भीड़ की शक्ल में सड़कों पर घूमे, या व्यापारी डरे, तो वो उस डर को दूर करे। भीड़ को भगाए। लेकिन वो करते नहीं। न ही पंजाब का सीएम उनको ऐसी इन्स्ट्रक्शन देता है।
इस पर मैंने 2-3 दिन पहले सोशल मीडिया पर नीचे दिया एक व्हिडिओ डाला।
लेकिन इस व्हिडिओ के डलते ही, सोशल मीडिया पर, व्हाट्सप्प पर कुछ लोगों ने मुझे भँड़ना शुरू कर दिया। ऐसे लोग वो होते हैं जिनके पास करने को और कुछ बेहतर होता नहीं। मैं ऐसे लोगों को कुछ जबाब ही नहीं देता।
लेकिन उसके बाद मुझे अनजान नंबरस से फोन आने शुरू हो गए। जो मेरी कही गई बात को तोड़-मरोड़ कर, उसको बढ़ा कर, मेरे सामने पेश करने लग गए। लेकिन 1-2 काल सुन कर उसके बाद मैंने ऐसी काल शुरू में ही काटनी शुरू कर दीं। क्यूंकी सामने वालअ अक्सर वो होता है जो अपने खेत में या कहीं और बेहला बैठा होता है, और उसी बहले पण में सोशल मीडिया पर कोई भी व्हिडिओ देख कर उसको काल करने के लिए और गालियाँ आदि निकालने के लिए उसके पास खुला टाइम होता है।
दूसरी तरफ़, मेरे पास ऐसे अनजान लोगों के फोन सुन कर सब को अलग अलग लॉजिक देने का टाइम नहीं होता। मैं अपने फ्री टाइम में सोशल मीडिया पर अपने विचार रखता हूँ। इसका मतलब यह नहीं होता की मैं उन विचारों को हरेक काल करने वाले को अलग अलग समझाने का जिम्मेदार भी बन गया। न। ऐसा नहीं हो सकता। यदि किसी ने समझना है। विचारों का आदान प्रदान करना है तो वो मेरे साथ टेलग्रैम या व्हाट्सप्प पर संपर्क करे। यदि मुझे लगा की उसका बोधिक लेवल मेरे स्तर का है (चाहे विचार मेरे से उलट ही हों), तो मैं किसी फ्री दिन में उसको बात के लिए टाइम दे सकता हूँ। वरना नहीं!!
यह ठीक वैसा ही है जैसा की कोई 5th क्लास का टीचर 10th क्लास के टीचर को कुछ समझाने को कहे। 10th का टीचर न तो 4th/5th के बच्चे को अपनी बात समझा पाएगा, और न ही वो Phd लेवल के बंदे की बात समझ पाएगा। एक से वो कम समझदार है, दूसरे से कम।
खैर, जब मैंने बात नहीं की तो कुछ बाहर के नंबरस से मुझे व्हाट्सप्प काल आने लग गईं। जब मैंने वो नहीं उठाए तो किन्हीं बंदों ने नए व्हाट्सप्प ग्रुप बना कर मुझे उसमें डालना शुरू कर दिया। और उन ग्रुपस का नाम मुझे और मेरे परिवार को गालियाँ वाले नाम रखे गए। जगह जगह सोशल मीडिया पर मुझे गालियाँ निकालने वाली पोस्ट दिखनी शुरू हो गईं। ऐसी जगह मेरे नंबर डालने लग गए जहां मेरा कोई मतलब नहीं था (उदाहरण के तोर पर मुझे कुछ बंदों की काल आईं की क्या मैं अपनी भैंस बेचना चाहता हूँ?)।
इन सब बातों का क्या मतलब निकला? की वो सब लोग शरीफ लोग हैं?
लेकिन मैं यह भी मानता हूँ की आंदोलन में सब ही गुंडे बदमाश नहीं हैं। हरेक आंदोलन में सब तरह के लोग होते हैं, और इस आंदोलन में भी गलत और सही दोनों हैं।
लेकिन मुख्य बात है की किसान लीडर किस और हैं? क्या वो जोर जबरदस्ती के साथ बंद करवाने के हक में हैं? या नहीं?
यहाँ पर मैं यह कहना चाहता हूँ की यदि वो जोर जबरदस्ती के साथ बंद करवाने के हक में नहीं हैं, तो क्या उनका फर्ज नहीं बनता की जब वो बंद की काल दें तो साथ में यह भी कहें की जिसका अपना व्यापार/दुकान बंद करने का दिल नहीं करता, वो बंद न करे? वो नहीं कहते!! क्यूँ नहीं कहते, यह आपको मालूम है!!!