How Davendra Sharma cut 20 drivers necks from behind to just loot their cars

दवेन्द्र शर्मा, कैसे 20 बंदों की गर्दन काटने में कामयाब हो पाया? कैसे गले से निकलता खून उसको भाता था?

दविंदर, जो की अलीगढ़ , उत्तर प्रदेश में एक आयुर्वेदिक डॉक्टर था, को पैसों के लालच ने कार चोरी करके बेचने की आदत डाल दी। हालांकि डॉक्टर लोग जान बचाने के लिए जाने जाते हैं, लेकिन 2 कार चोरी करने के बाद उस डिग्री होल्डर आयुर्वेदिक डॉक्टर को लगा की कार चोरी छुपे चुराने से ज्यादा अच्छा है की उसको किराए पर ले लो और ड्राईवर को सुनसान जगह पर क़त्ल करके उसकी कार चुराना ज्यादा आसान भी है और फिर कार की गुमशूदगी की रिपोर्ट लिखवाने के लिए भी कोई नहीं बचता।

26.11.2003 को उसने पहले मर्डर करने का होंसला किया। और अगले 2 वर्षों के बीच उसने करीब 20 ड्राईवरस का यूं ही क़त्ल करके उनकी कारें बेच दीं। लाश को वो सदा अलीगढ़ के पास बहने वाली कासूमपुर नदी में फेंक आता था।

फिर धीरे धीरे उसको लगा की अकेले वो इस बिज़नस को ज्यादा नहीं बढ़ा पाएगा। और इसलिए बाद के कुछ कत्ल में उसने अपने 2 साथी हिस्सेदार भी बनाए। यूं 3 बंदे मिल कर ड्राईवर को आसानी से मार सकते थे और अधिक वारदातों को अंजाम दे पाते थे। उन्होने जवान और अधेड़ और बूढ़े, कभी किसी में कोई भेद भाव नहीं किया। जो सामने आया, उसको ही शिकार बनाया।

क़त्ल करने का उनका ढंग ड्राईवर के सर पर पीछे से कोई हैवि चीज़ या चाकू से उसकी गार्डन काटना होता था, या फिर कई केसेस में उसने पीछे से कपड़ा डाल कर उनका गला भी घोंटा। कई बार उसको लगा की उसको ड्राईवर को कार से बाहर निकाल कर मारना चाहिए, क्यूंकी बाद में कार से खून साफ करना बहुत मुश्क़ुइल और टाइम खाने वाला काम हो जाता है। पुलिस को उसने बताया की इतने कत्ल करके भी उसके पास सिर्फ 15 लाख ही जमा हो पाये। उसका लक्ष्य करोड़ रूपीस जमा करने का था।

वो 26 नवम्बर 2003 का दिन था, जब उसने नरेश कुमार की सूमों गाड़ी बरेली जाने के लिए किराए पर ली थी और रास्ते में क़त्ल करने में वो कामयाब हुआ।

इधर जब नरेश कुमार वापिस नहीं लोटा, तो नरेश के भाई, राम निवास ने पुलिस रिपोर्ट लिखवाई थी। और बाइ चान्स, राम निवास का बेटा संजु तब पास ही था, जब सुरेन्द्र ने नरेश की गाड़ी किराए पर बूक की थी। लेकिन उसका हुलिया ब्यान करने के बाद भी पुलिस जल्दी जल्दी दविंदर को ढूंढ नहीं पायी थी। पुलिस की 3 टीम उसको हर जगह तलाश रहीं थीं। लेकिन अंतत 9.2.2004 को वो पुलिस के हत्थे चढ़ा और सब कुछ बताया। तब तक वो कितने ही और क़त्लों को अंजाम दे चुका था।

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सबसे पहले उसको बलबीर सिंह की गुड़गाँव की एक कोर्ट ने 11.2.2002 को नरेश कुमार ड्राईवर के क़त्ल के जुर्म में उसको कुछ वर्ष की सज़ा सुनाई (पता नहीं इतनी थोड़ी सज़ा कैसे सुनाई गयी)। वो उसका पहला क़त्ल था (या यूं कहो की पहला क़त्ल था, जिसका फैसला कोर्ट ने किया)।

एक बार जब पुलिस उसको कोर्ट से निकाल कर जेल ले जा रही थी, तो मीडिया को उसने खुद को बेकसूर बताया, बल्कि एक अजीब बात भी कही, “मैं अपनी सारी बात फांसी के फंदे पर ही बताऊँगा”।

उसके बाद, 13.3.2007 को गुड़गाँव की कोर्ट ने उसको (और उसके साथियों को, जो की आज तक पकड़े नहीं गए) एक और क़त्ल में तो उम्र क़ैद की सुनाई।

बाद में 15.5.2008 को उसको एक दूसरे क़त्ल के केस में फांसी की सज़ा सुना दी गयी। लेकिन फांसी execute हुई या नहीं, या कोई अपील पेंडिंग है, इसका अभी तक पता नहीं। न ही कहीं इसका कोई जिक्र आया है।

बॉबी ज़ोफन

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