ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, और शूद्र: देव समाज से कैसे जुड़ गए?

Highlights: ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, और शूद्र: रत्ना डाकू ग्रंथ लिख कर ब्राह्मण हो गया। जबकी राजा हरीश चंद्र चांडालों वाले काम करके चांडाल बन गया। एकलव्य क्षत्रिय कैसे हो गाय? मोती राम महरा क्षत्रिय वाला काम कैसे कर गया? सिरजूदोला से अधिक ताकत, एक बनिए, जगत-सेठ की कैसे बन गई? शोकतगंज और मीर जाफ़िर भी पीछे रह गया। सामाजिक व्यवस्था में जो समूह निचले पायदान पर होता है, उसी की पहचान का सूचक शब्द गाली बन जाता है।

एक कहावत से शुरू करूंगा, It’s not our position but our disposition that determines our destiny
हिन्दू धर्म में लोगों के काम के अनुसार 4 वर्ण बनाए गए थे। ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, और शूद्र। सभी को कुछ अन्य नामों से भी पुकारा जाता रहा है, जैसे वैश को बनिया, क्षत्रिय को खत्री, ब्रहमीन को पंडित या बामन, या फिर शूद्र के लिए बहुत शब्द बदले गए: अछूत, असुर, अवर्ण, भंगी, चांडाल, चूड़ा, दास, दस्यु, लाल बेग़ी, हरिजन, गिरिजन, untouchables, depressed classes, scheduled castes शब्द भी बने, जिन सभी को हम आगे चल कर डिस्कस करेंगे।
यह अलग अलग वर्णों वाले व्यक्ति, इनमें सबसे प्रमुख बात यह है की चारों वर्णों में से कोई भी जन्म के हिसाब से फिक्स नहीं थे। यह काम, उनके कर्म, या किते के हिसाब से थे। यदि कोई बहादुरी का काम करता था, तो वो क्षत्रिय हो जाता था, अगर कोई ग्रंथ लिख देता था तो वो पंडित या ब्राह्मण हो जाता था। अगर कोई चीजों का व्यापार करके धन इकठा करने लग जाता था तो वो वैश्य, बनिया हो जाता था। कोई राजा हरीश चंद्र अगर चांडालों वाले काम करता था तो चांडाल ही कहलाता था। और कोई भी बंदा अपना काम, कित्ता अपनी मर्जी के हिसाब से चुन सकता था, उसको कोई नहीं रोक सकता था, न ही रोक सकता है।

अगर कोई एकलव्य चाहता की वो क्षत्रिय का काम करे, तो वो कर सकता था। कोई उसको रोक नहीं सकता था, कोई रोकता नहीं था। अगर कोई शूद्र कहे की वो वैश्य के तरह अपना कोई छोटा मोटा व्यापार करे, तो किसी भी वक़्त का कानून उसको नहीं रोक सकता था।
इसी बाल्मीकि समाज के बाल्मीकि ऋषि, पहले एक शूद्र के घर जन्मे थे, फिर रत्ना डाकू बन गए, और अंत में बाल्मीकि ऋषि बन गए, जिन्होंने की सारी राम कथा, रामायण का लेखी-करन किया।
— wait
बड़े से बड़ा कारोबार, पैसे से नहीं, जाती से नहीं, एक बड़े आइडिया से बड़ा होता है. एक बड़ी सोच से बड़ा होता है।
और आपके कारोबार से ही आपकी जाती बनती है। जैसे काम, वैसा धाम, और वैसा ही आयाम। जैसा कित्ता आपका होगा, वही आप बन जाएंगे। और कोई दूसरा आपको आपका कित्ता चुनने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। जो लोग कहते हैं की शूद्र जाती को दबाया गया, उसको कुछ भी और कित्ता अपनाने नहीं दिया गया, वो सिर्फ अपनी कमजोरी दूसरे के सर पर लादते हैं। कैसे दबाया? किसने दबाया? आप यह कह सकते हैं की गरीब को अमीर दबाता रहा है, या दबाने का यत्न करता है। सच है। हो सकता है। क्यूंकी दुनिया में दो ही तबके हैं, क्लाससेस हैं, विनर और लूसर। लेकिन लूसर यदि अपनी असफलता अपने जन्म स्थान, परिवार, हालतों, पर फोड़ने की बजाय, ठान ले, तो अंत में वो विनर बन कर ही हटेगा, यदि उसमें हठ हो तो। What you think, you become.
Remember: a common man desires, wishes-security, proper circumstances,-- an uncommon mind-- creates them.

– wait2
हाँ, यह है की ज्यादातर बेटे, अपनी मर्जी से ही, अपने पिता का ही काम अपनाते हैं। और इस प्रकार लुहार के बेटा लुहार ही कहलाता था, बढ़िय का बेटा बढ़ई, भंगी का बेटा भंगी कहलाता था। चमार का चमार। बनिए, लाला का लाला बनकर पैसों में ही डील करता था, करता है। अमीर और गरीब का फ़र्क तब भी था, आज भी है, हमेशा रहेगा, सदा रहना भी चाहिए। यह प्रकृती का नियम है, सिस्टम है।

================= Diff was of work, not castes
फ़िर भी, पुराने समयों में आपस के वर्णों में इतना फ़र्क था ही नहीं, जितना अब बन चुका है। तब अमीर बंदे के घर भी वही सुविधाएं होती थीं, जो गरीब, वैश्य या शूद्र के घर पर होतीं थीं। अगर हम केवल देश के एक राजा परिवार को अपवाद माँ लें, तो बाकी अमीर क्षत्रिय हों, या ब्राह्मण या कोई भी, उनके घर भी कोई ऐसे उपकरण या सुविधाएं नहीं थीं, जो गरीब के घर पर न हों। लगभग एक जैसे ही जानवर, गाय आदि वो पालते थे। यह हो सकता है की अमीर ब्राह्मण या बनिए के पास 200 गाय हों और गरीब शूद्र के पास 2. जैसे क्षत्रिय के पुत्रों को दीक्षा देने के बाबजऊद उनके गुरु अपने झोंपड़े या आश्रम में ही रहते थे, और वहीं पर सभी राजकुमारों को रह कर शिक्षा लेनी होती थी।

तो फिर फ़र्क क्या था? क्यूँ चिल्लाते हैं लोग? काम-धंधे के, कित्ते के फरक तो सदा से थे, सदा रहेंगे। इसकी अनगिनत उधारने आपको इतिहास में मिल जाएंगी, की जाती या वर्ण का कोई महत्व नहीं, महत्व केवल धन का ही रहा है। लोग चिल्लाते हैं क्यूंकी वो एक समुदाय के लीडर बनना चाहते हैं। तो जब उनको कोई सार्थक मुद्दा नहीं मिलता, तो जो भी थोड़ा बहुत मुद्दा बन सकता हो, वो उसको बना कर खुद को बहुत ऊँचा महलों तक ले जाते हैं। और जो गरीब होते हैं, जो उनकी तरफ आशा की किरण के रूप में देख रहे होते हैं, वो तब भी सड़क पर ललचाई भरी नज़रों से उस अमीर के हक में नारे लगा कर अपना कंठ सूखा रहे होते हैं, जिनकी भवनयों पर पैर रख कर वो औरत या मर्द, ac गाड़ी में बैठ कर, 10-10 कारों के सिक्युरिटी काफिले में बैठ कर उनके पास से गुजर जाता है, लेकिन उनके पास कार तक नही रोकता अपनी।

खैर, धीरे धीरे, जो काम दिमागी थे, उनकी वैल्यू, उनकी तनखा बढ़ती गई। अगर किसी बनिए के पास क्षत्रीय से भी अधिक संपदा इकठी हो गई, तो उसका प्रभाव उस देश के उस सेनापति से भी अधिक हो जाता था, और वो खुद को वैश्य समुदाय से ऊपर, यानि क्षत्रीय तुल्य समझने लगता था। मैं आपको इन चीजों की कुछ उधारनें देना चाहूँगा।

================= Examples
गुरु गोबिन्द सिंह जी के पुत्रों को जोरावर सिंह और फतेह सिंह, माता गुजरी जी के साथ थे। जो सरसू या सरसा नदी पर विच्छड़ गए। इनको गंगू तेली मिला। जिसने धोखे से इनको वजीर खा के पास फंसा दिया। लेकिन मोती राम महरा, जो वर्ण व्यवस्था की हिसाब से निम्न वर्ण का था, लेकिन उसने उच्चतम कोटी का काम किया। जब सारे परिवार का जो भी धन था, उसको पहरेदारों को 2-3 दिन में सिर्फ़ माता गुजरी और उनके बच्चों को गरम दूध पिलाने के लिए ही दे दिया, सिर्फ गरम दूध पिलाने की खातिर। और इसी जुर्म के लिए मोती राम महरा को, उसकी वृद्ध माँ को, उसकी पत्नी को, बल्कि उसके छोटे से नन्हे बच्चे को भी कोल्हू में पीस दिया। फिर क्या कोई मोती राम महरा को कह देगा की वो निम्न जाती का था, उच्च जाती का काम कैसे कर दिया? कोई नहीं कह सकता। क्यूंकी हरएक बंदा केवल और केवल अपने कितते, अपने काम से पहचाना जाता रहा है। तब भी। आज भी। जो कान्स्टिटूशन के स्केजूल में लिखी caste हैं इंडिया में, उस निम्न जाती या caste के बंदे को, कोई चूड़ा तभी कहकर चिड़ा सकता है, जब सामने वाला गरीब हो। वही व्यक्ति, चाहे वो कितनी भी निम्न जाती से क्यूँ न समझआ जाता हो, अगर बैंक में 50 हजार रूपी महिना लेता है, तो उसको पहले तो आप कह नहीं पाओगे, यदि कहोगे भी तो उस पर कोई असर नहीं होगा, क्यूंकी आपकी बात में दम नहीं होगा। और यह भी हो सकता है की वो आपको बराबर ही कोई गाली निकाल दे। यानि मामला सारा पैसों का है। जाती का नहीं।
नेक्स्ट, दीवान टोडर मल जो वैश्य थे, बनिए थे, ने अपना सम्पूर्ण जीवन में धन ही कमाया, लेकिन वही सारा कमाया धन देकर सिर्फ उनके संस्कार के लिए जगह खरीदी और क्षत्रिय धर्म वाला काम करके दिखाया। बाद में वजीर खान ने टोडर मल की मशहूर जहाजी हवेली तहस नहस कर दी, और बची खुची जायदाद भी तबाह कर दी थी। लेकिन अब आप ही बताओ की वो बनिए हुए, या क्षत्रिय? निश्चित ही कर्म ही महत्वपूरण है। आपका अंतिम नाम नहीं।
======== sijaajudola
फिर 1756-57 में मशहूर पलासी के युद्ध में मुस्लिम राजा सिरजूदोला से अधिक ताकत, एक बनिए, जगत-सेठ की थी। सिरजूडोला ने धीरे धीरे उसका सारा धन लूट लिया था। उस से नखुश होने के चक्कर में वो अंग्रेजों से जा मिला। उस पर शोले फिल्म में अमिताभ द्वारा बोली गई वो कहावत सही बैठती है की नेकी हल चलाना सीखा देती है तो बुराई बंदूक। और ऐसे वो अपने बंदों को साथ लेकर, क्षत्रियों से भी अधिक लड़ा, और सिरज़्उदुलह को हराने में कामयाब हुए। कोई उसको यह थोड़े न कहता था की तुम लड़ नहीं सकते क्यूंकी तुम वैश्य हो? काभी भी नहीं। बात सारी धन की थी।
वर्ण या जातियों का किसी भी धर्म समुदाय में कोई फरक नहीं, सिवाये गरीबी अमीरी के। यहाँ मैं थोड़ा स मुद्दे से हटते हुए 1-2 बातें बताता चलूँ। की जब औरेनगजेब की मृत्य के बाद सारी रियासतें बिखरने लग गईं। गुरु गोबिन्द सिंह जी भी चले गए। तब बंगाल साइड में जो अरेंगजेब का एक वजीर, अलवर्दी खान, था। और आपको पता ही है की इंडिया में पूरे मुस्लिम शासन के दोरान हिन्दू कुचले ही जाते रहे, अपनी व्यापक शांति-शांति के पाठ के चलते, लेकिन मुस्लिमों का पतन उनकी अंदरूनी बगावतों और बाद में अंग्रेजों के कारण हुआ। तो अलवर्दी खान ने बगावत करके औरेनगजेब की बंगाल साइड की बादशाहत अपने कब्जे में कर ली। लेकिन क्यूंकी अलवर्दी के पास केवल तीन बेटियाँ ही थीं, तो उसने अपनी छोटी बेटी के बेटे सिरजूडोला को जवान उम्र में ही राजा घोषित कर दिया। तो फिर सिरजूडोल की मासी के बेटा शोकतगंज, और एक और वजीर मीरजयाफिर, जिसको बाद में अंग्रेजों ने नाम का राजा भी बनाई रखा बहुत देर तक, वो भी सारी उम्र उससे दुश्मनी निभाता रहा की उसको क्यूँ नहीं राजा बनाया उसके नाना ने। खैर, बात यह है की सिरजूडोला भी इन्जॉय कर न सका और एक बनिए ने क्षत्रिय का काम करते हुए उसका तख्त पलटने में खूब मदद की।

तो क्या वर्ण व्यवस्था ने इनको कभी मना किया की तुम यह काम मत करो? नहीं!! कभी नहीं। वर्ण व्यवस्था, सिर्फ समाज में एक ऑर्डर, एक अनुक्रमता लाने के लिए थी। क्यूंकी तब सिम्पल साधारण काम थे, भगवान की तपस्या और मंतरोंचरण का काम, जिसमें शुद्धता की बहुत महता थी, और होनी भी चाहिए। और जो समुदाय यह काम करता था, उसको ब्राह्मण कहा जाने लगा। लड़ाई से रक्षा। जो की अपने आप में सबसे ज्यादा महत्व पूर्ण काम था जो की देश को दुश्मनों से लड़ाई की हालत में यह प्रेरणा देता था की खुद कट जाओ, तुम्हारी लाश से गुजर कर ही दुश्मन परेवेश पा सके, वो काम करने वाला क्षत्रिय। उसके बाद वैश्य, की भाई तुम बाकी तीनों वर्णों के जीवन यापन की जरूरतों को पूरा करो। और फिर अंतिम बचा काम, की तीनों के मल मूत्र की सफाई या अन्य छोटे काम करने वाले को शूद्र कहा जाने लगा, शूद्र यानि जो बंदा खुद को यह तीनों काम करने के योग्य नहीं पाता था। चाहे दिमाग की कमी की बजह से, या फिर इसलिए की उसके पूरखों ने वही आसान काम चुना। हालाँकि उसको कोई रोकता नहीं था। न ही रोक सकता था। न ही बनियो को कोई युद्ध करके क्षत्रिय बनने से रोक सकता था। न की कोई यह कह सकता है की तुम गाँव में सफाई आदि का काम करते हो तो अपने नाम के पीछे ‘सिंह’ नही लगा सकते। कोई भी खुद को गुरु गोबिन्द सिंह का सिंह कह सकता है, चाहे वो सबका मल ही क्यूँ न उठाए। कोई उसको रोक नहीं सकता। कोई किसी को कुछ करने से, कुछ नाम रखने से, नहीं रोक सकता था। बस यह साधारण वर्गीकरण था, जो हमारे पुरखों ने किया। यानि अपने काम की बजह से वो किसी भी वर्ण में आते थे, न की किसी भी खास वर्ण में आने के कारण वो काम करते थे। वो स्वतंत्र थे, किसी भी दूसरे काम या वर्ण या वर्ग वाले काम करने के लिए।

================= Words are not the culprits. Govt’s joker act
ऐसे धीरे धीरे जब समाज और सभ्यता ने और प्रगति की। जिनको अब तक शूद्र कहा जाता था, और शूद्र शब्द में कोई घृणा भी नही थी, लेकिन अब क्यूंकी लोग उनसे उनके कित्ते की बजह से परे-परे रहते थे, तो कुछ लोग उनको अछूत कहने लग गए। नाम बदल दिया। लेकिन जैसे जैसे शिक्षा का प्रसार हुआ, तो समाज के कुछ बंदों ने ‘अछूत’ को गलत समझते हुए, उनको चूड़ा कह कर संभोदहित करना शुरू किया। तब चूड़ा शब्द का मतलब, दल का, या घर का प्रमुख था। जिसके बिना कोई काम संपूरण नहीं होता। लेकिन वही बात, धीरे धीरे लोगों को लगने लगा की चूड़ा शब्द का मतलब तो गलत है।

दरअसल, सामाजिक व्यवस्था में जो समूह निचले पायदान पर होता है, उसी की पहचान का सूचक शब्द गाली बन जाता है। पूरे भारत वर्ष में जो भी शब्द, गरीब या कोई छोटा कित्ता करने वाले के सूचक थे, वो सामाजिक व्यवहार में गाली बन गये। इस अर्थ में जो जितना अधिक गरीब और छोटा, हाथ की महनत करने वाला काम करता, उसकी पहचान उतनी ही बड़ी गाली। अगर कोई किसी को भंगी कहता, तो वो चमार कहने से ज्यादा गाली। अगर कोई किसी को चमार कहता तो वो कुम्हार कहने से कम गाली। यानि उस शब्द में गाली नहीं थी। बल्कि उस कित्ते में गाली छिपी रहती है।
लेकिन फिर, उसके बाद, महात्मा गांधी ने यह सभी शब्द बंद करके, ‘हरिजन’ शब्द शुरू करवाया। सब बहुत खुश हुए। लेकिन फिर वही बात, धीरे धीरे हरिजन का मतलब जब प्रसरित हो गया की इसका मतलब तो यह है की जो बंदा सफाई का, या दूसरे छोटे मोटे काम करता हो, उसके लिए उपयुक्त होता है, तो वो अच्छा खासा इज्जत वाला शब्द भी कुछ लोगों को गाली लगने लग गया।
तो वो कहते की नहीं हमें अब हरिजन भी पसंद नहीं।
तो उस वक़्त, देश आजाद होने पर, सविधान के पहले ही schedule में सभी जातियों और कबीलों जो लगभग 2000 हैं, की सूची-बध की गई है। तो धीरे धीरे लोगों ने महात्मा गांधी के दिए शब्द ‘हरिजन’ को भी गाली तुल्य बना लिया, क्यूंकी उसका मतलब बन गया की सफाई आदि का काम करने वाला सदियों से चला आ रहा गरीब व्यक्ति। और उसकी जगह schedule caste कहने लग गए। यानि वो कास्ट या जातियाँ, जो कान्स्टिटूशन के पहले स्केजूल में मेन्शन की गई हैं। हालाँकि उसमें ऊंची नीची सभी जातियों का जिक्र है।
लेकिन अब पिछले 20 वर्षों के लगभग, गवर्नमेंट ने यह कानून बना दिया की किसी की जाती बोलनी ही नहीं है। ऐसा कोई शब्द बोलना ही नहीं है, जिससे उसकी जाती की सूचना मिले। यानी जाती सूचक शब्द के जरिए, जाती की सूचना देनी ही नहीं है।
लेकिन खुद दोगली गवर्नमेंट छोटी सी भी ऐप्लकैशन देने जाओ, तो आपकी जाती की सूचना मांगती है।
तो फिर इन गरीब लोगों के लिए एक और, नया शब्द ढूँढा गया, वरता गया: दलित।

और अब वो दिन दूर नहीं, जब कुछ लोगों को दलित शब्द गाली लगने लग जाएगा। क्यूंकी गड़बड़ किसी शब्द में नहीं। गड़बड़ उस अर्थ में है, जो वो इंगित करता है।
अगर आज हम डिक्लेर कर दें की गीदड़ को गीदड़ नहीं, भिदड़ कहा जाया करेगा। तो जल्दी ही, भिदड़ उस कायरता का सिम्बल बन जाएगा, जो गीदड़ है। उम्मीद है की आप समझ गए होंगे की शब्द बदलने से मायने थोड़ा न बदल जाएंगे। शब्द में थोड़ा न कुछ है। लेकिन फिर भी, चलो। अगर आपने कहना ही है की किसी की जाती की सूचना मत दो, तो फिर वही सूचना तुम खुद क्यूँ पूछते हो? क्यूँ छोटी सी भी ऐप्लकैशन देने जाओ किसी भी डिपार्ट्मन्ट में, तो आप उसकी जाती की सूचना मांगते हो? इसका मतलब आप वही जाती का शब्द खुद न बोल कर, उस बंदे के मुहँ से निकलवाना चाहते हो। जो शब्द किसी को गाली लगते थे, वो शब्द आप न बोल कर उसको खुद को कह रहे हो की बोलो। क्या मीनिंग हुआ इस बात का?
और फिर, जब जाती की सूचना देना गलत ही है, तो फिर बनिए की जाती की सूचना देना गलत क्यूँ नहीं है? बामन को बामन कह कर पुकारना गलत क्यूँ नहीं है?
क्या बेफिजूल की बात है ये।

================== Poor men available on rent
खैर, अब मैं अंतिम बात पर आता हूँ।
आज कुछ लोगों ने इसको बाकायदा अपना धंधा बना लिया है। वो कहते हैं की हम फलानी वर्ग से संभनध रखते हैं और हम किराये पर उपलव्ध हैं। अगर आपने समाज में किसी को भी ठीक करना है, उससे बदला लेना है, तो हम पुलिस स्टेशन जाएंगे, और कहेंगे की इस बंदे ने हमें चूड़ा बोला है। या जो भी हमारी जाती, चमार या बाज़ीगर, या मेघावल, भामि, खासी, जो भी, बोली है। और क्यूंकी उसमें सीधी गिरफ़्तारी है, तो वो इसका फ़ायदा उठाते हैं, और पैसे कमाते हैं खूब।
ऐसा ही एक केस देव समाज के मामले में सामने आया है। वहाँ पर एक आदमी निममा, जिसको हम आज के कानून के हिसाब से दलित caste का या schedule caste का, कह सकते हैं। और जो फ़ेरोजेपुर देव समाज कॉलेज में से पंजाब गवर्नमेंट से सैलरी पा रहा है। लेकिन फिर भी ढीलों के कहने से अपनी ड्यूटी छोड़ कर यहाँ देव समाज मंदिर में बैठ है और इनको यह धमका रहा है रोज।

और ऐसा नहीं है की यह मैं कह रहा हूँ। यह खुद देव अनूप जी सामने आकर अपना दुख रो रहे हैं। और यह भी नहीं है की यह शिकायत उन्होंने पुलिस के पास नहीं दी। लेकिन पुलिस का सबको मालूम ही है। वो रोज कहता है की वो अपनी ही समुदाय के दूसरे बंदों को इकाठा करके, पुलिस स्टेशन के सामने जाकर धरना देकर यह कहेगा की तुमने मुझे चूड़ा आदि बोला है। जबकी आज के दिन मुझे सिर्फ सरकार मेरी जाती के नाम से बुला सकती है, पूछ सकती है। तो देव उसको कहता की मैंने तो कहा ही नहीं। वो कहता की जब मैं अपनी वाइफ, अपने सेकड़ों साथियों, के साथ यह गवाही देंगे की तुमने कहा है, तो तुम जैल में जाने के बाद, कोर्ट में साबित करते रहना की तुमने कहा है या नहीं।

दोस्तों, अनूप जी की वो इंटरव्यू देखिए, और यह चीजें खुद देव अनूप जी के मुहँ से ही, या भी सुन लीजिए, देख लीजिए। और खुद फ़ैसला करिए की समाज की हालत क्या है। और आपका फ़ायदा भी हो सकता है, क्यूंकी यदि आपने किसी से कोई बदला लेना है, तो देव समाज मंदिर में आप संपर्क कर सकते हैं, शायद आपको भी यह सेवा कुछ पैसे देकर मिल जाए। ऐसी चीजें देख कर वो इंग्लिश की कहावत झूठी लगने लग गई की Truth can be doubted, troubled, upset, but not defeated.

#scheduled-caste
#castes
#schedule
#caste

1 Like