कुछ लोग रत्ना डाकू और बाल्मीकि ऋषि के नाम पर कितनी कितनी भद्दी गालियां निकाल देते हैं लेकिन बठिंडा पुलिस ने मुझे ही जैल में डाला।

इंटरनेट पर बहुत जगह यह बताया गया है, की बाल्मीकि ऋषि, ऋषि बनने से पहले रत्नाकर डाकू थे।
लेकिन फिर वो अपने कामों और महनत से सारी रामायण को लिपि बध करके वाल्मीकि ऋषि के नाम से मशहूर हुए। उस संभनध में मैंने 24 मई, 2020 को एक विडिओ ऑनलाईन डाला था। पूरी पोस्ट और इस विडिओ की ट्रैन्स्क्रिप्शन आदि इस पोस्ट में, उसी विडिओ के साथ में आपको यहाँ, इस पोस्ट में मिल जाएंगी।

व्हिडिओ 24 मई, 2020 को डला था। और उसके बाद 29 मई को, यानी 5 दिन बाद, मुझे बठिंडा के ही एक वासी एक दीपक परोचा ( मोबाईल: 8872143444 ), जो MCB-5/6633, संजय नगर की 2 नंबर गली में रहता है, और कहता है की वो सभी बाल्मीकियों का प्रधान है, का फोन आया। उसने रत्ना डाकू वाली बात पर ऐतराज किया, तो मैंने उसको बहस करने से मना करते हुए कहा की मैं कानून पर चलने वाला आदमी हूँ, और अगर मैं गलत हूँ तो उसको कानून का दरवाजा खटखटाना चाहिए। लेकिन इस पर वो मुझे बहुत ही भद्दी गालियां देना शुरू कर देता है, और धमकाता है की कानून के जरिए भी और कानून के बाहर भी मुझे भगाएगा।

कुछ लोग, जिनको सरेआम उनको पता है की रिकॉर्डिंग चल रही है। अपने से बड़ी उम्र के 50 वर्ष के एक टीचर और समाज सेवी को सरे-आम धमकी देते हैं। क्यूंकी उनको मालूम है की पुलिस उनका कुछ नहीं बिगाड़ेगी।

आखिर ऐसी नोबत समाज में आई क्यूँ है? क्यूँ पुलिस का डर खत्म हो चुका है? अब मैंने एक अच्छा सिटिज़न बनते हुए पुलिस/एसएसपी ऑफिस, बठिंडा के पास कम्प्लैन्ट लिखवा दी है, जिसका कॉम्पलइंट Registration no. SSPBD/E/2020/00018, डैटिड 29-05-2020। अब देखें वो क्या करते हैं।

उस दीपक परोचा की रिकॉर्डिंग आप आगे सुन सकते हैं। (कृपया बच्चों या लेडिज की प्रेज़न्स में बिना हेड फोन पर मत सुनें)। खुद को बाल्मीकि का चेला कहने वालों में से कुछ बंदों का लेवल सुन/देख लीजिए आप।

अगर फेस्बूक का कोई भी लिंक किसी भी बजह से खुल नहीं रहा तो समझ लीजिए फेस्बूक आपको इस लिंक पर भेजना नहीं चाह रही। लिंक का कोई कसूर नहीं है उसमें। किसी भी दिक्कत के लिए आप मुझे 94 7878 4000 पर व्हाट्सप्प करके लिंक ले सकते हैं।

#balmiki
#threatening
#call
#deepak
#sc-act
#scact
#bobby case

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Deepak Procha के मोबाईल नंबर के व्हाट्सप्प पर यह फोटो सेव की हुई है:

#deepak-procha
#दीपक-परोचा

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30.5.2020 की दोपहर को बाल्मीकि समाज के 12-13 बंदे गए और SSP बठिंडा को मेरे ऊपर Fir करने की रीक्वेस्ट देकर आए, जिसका विडिओ आप यहाँ पर देख सकते हैं:

हालाँकि दोपहर को ही मैंने भी इस बात की सारी जानकारी बठिंडा पुलिस को कम्प्लैन्ट नंबर SSPBD/E/2020/00018 के जरिए जानकारी दी, और उनसे पर्टेक्शन माँगी, जिसका अभी तक उन्होंने कोई उतर नहीं दिया था।

शाम को मुझे जब यह पता चला की इंटरनेट पर रत्न डाकू ही बाल्मीकि ऋषि है या नहीं, इस बात पर पहले से डिस्प्यूट है, और जालंधर के एक व्यक्ति ने मुझे, नीचे दी गई, एक न्यूज कटिंग भेजी जिसमें यह लिखा था की एक औरत जिसका नाम मंजुला सहदेव है, ने पटियाला कोर्ट में यह साबित किया की बाल्मीकि ऋषि पहले रत्ना डाकू नहीं थे (हालाँकि बाद में यह न्यूज़ गलत साबित हुई, जैसा की दूसरी पोस्टस में बताया गया है। उस न्यूज कटिंग वाले ने मेरे से करीब आधा घंटा बात की और मुझे अपना नाम अनिल कुमार जालंधर शहर से, बताया।

हालाँकि उनकी बातों में कोई अधिक दम नहीं था। लेकिन जब वो लोग भी मुझे मजबूर करने लग गए, जिनको मैं न्याय प्रिय मानता था, और जिनके लिए मैं Ssp की आँखों में रड़कने लग गया, और मेरे चाहने वाले तो पहले ही मेरे को दिन रात कहते थे की मैंने समाज की और पुलिस की बुराईयों के बारे में बोल कर क्या लेना है, तो फिर रात 8 बजे के करीब, मैंने सुखपाल सरा के कहने पर, एक जायज़ तरिके से माफी माँगी। (हालाँकि उसके कहने पर चलने के बाबजऊद सरा साहब ने क्या किया बस पूछो ही मत)
माफी:
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=3157191777677067&id=118824138511315

यहाँ पर यह बात ध्यान देने योग्य है की इंटरनेट पर दोनों तरह की जानकारी उपलव्ध है, धार्मिक बुक्स में भी बहुत जगह इस रत्न और बाल्मीकि का जिक्र एक साथ आया है, फिर भी मैंने अपने भाई चारे और समाज का सोहादर को कायम रखने की दिशा में, मैंने, अपना फर्ज पूरा करते हुए, अपने उसी फेस्बूक अकाउंट से फिर से एक विडिओ पोस्ट डाली, जिसमें वो मंजुला सहदेव की अखबार की वो कटिंग, के हवाले से यह स्वीकार किया की मेरे से गलती हुई, और मैं सबसे जिसको भी कोई ठेस पहुंची, माफी माँगता हूँ। और यह भी कहा की अब से वो पक्ष मानूँगा, जो हमारी लोकल कम्यूनिटी चाहती है।

और यहाँ तक की उसके बाद मैंने दीपक परोचा को वापिस खुद फोन करके माफी मांगी। जिसकी 3:35 मिनट की रिकॉर्डिंग आप यहाँ सुन सकते हैं:

लेकिन इतना सब होने के बाद भी, मेरी उसी माफी के जबाब में वो बंदा धमकी भरे लहजे में कहता की हमारे 22 मोहल्ले हैं, जिसका मीनिंग मुझे यह समझाया गया की वो 22 मोहल्ले इकठे होकर मेरे पर अटैक करेंगे। यहाँ तक की उसने वोही फोन अपने एक साथी को पकड़ा दिया, और वो उससे भी ज्यादा आक्रामक था। आप सारी बात ऊपर दिए लिंक पर सुन सकते हैं।

इसके बाद दोस्तों, अगले आधे घंटे में, मुझे ऐसे ऐसे नम्बर से फोन आने लगे, जैसे इन्होंने अपने समुदाय में यह ढिंढोरा पिटवा दिया हो की मुझे फोन कर कर तंग करो, मुजह बहुत जगह से फोन आने लगे।

आखिर में मैं अपने मन को बहलाने के लिए, रोज की तरह सेर पर चला गया। मैं अपने घर से रेल्वे रोड, और वीर कालोनी की तरफ गया ही था, मैंने सोचा की वीर कालोनी में लाइट/प्रकाश की और मूड जाता हूँ। तो वहाँ पे मुझे 2-4 लड़के (2 करीब आए और 2 परे खड़े रहे), जिनकी उम्र करीब 20 और 30 के बीच रही होगी, ने रोक लिया। उन्होंने सीधा ही आवाज मारी, बॉबी, समाज सुधारक। और मेरे पलटते ही मेरे सर के करीब खड़े हो गए। मैं डर गया। लेकिन उन्होंने मुझे छूए बिना, यह शब्द बोले:

"अपना ध्यान रखना, तेरे साथ आने वाले दिनों में बहुत बुरा होगा। खुद की जान को बचा कर रखना, यह कब चली जाएगी, तेरे को भी पता नहीं चलेगा।” मैं उसके बाद इतना डर गया की आगे जाने का होंसला नहीं हुआ, और वापिस घर आ गया। घर में मैंने अपने बच्चों और वाइफ की और देखा और फैसला न कर सका की उनको यह बात बताऊँ या नहीं. लेकिन अंतत जीवन पर धमकी मिली थी, तो मुझे बतानी ही पड़ी। लेकिन मेरे दिल में घबराहट बढ़ने लगी। मेरे बच्चे कहते की डैडी आप अपना फोन बंद करके सो जाओ।

उसके बाद करीब 9/9.30 बजे का टाइम होगा, की मुझे फिर से एक अनजान नंबर 7009971217 से फोन आया, और उसने अपना नाम Deep Dashanand, Ravan Sena Bharat Sanghthan, Dist Ferozepur, बताया।
उस काल के शुरू में ही पता चल गया की उन्होंने कान्फ्रन्स काल की है, और दूसरी साइड में कई बंदे हैं। आप रिकॉर्डिंग सुनेंगे तो आप को भी पता चल जाएगा। 3:16 की रिकॉर्डिंग आप आगे सुन सकते हैं। कृपया इस रिकॉर्डिंग को बच्चों और औरतों के बीच बिना हेड फोन के मत सुनिए, हिन्दू देवी देवताओं को बहुत गंदी गाली बकी है उन्होंने:

उसके बाद उसने ऊपर दी रिकॉर्डिंग में ऐसे शब्द बोले की कोई भी हिन्दू अपने कानों से सुन नहीं सकता।
उसने सीधा कहा की “कृशन अपनी मामी को चोता रहा है, ब्रह्म अपनी बेटी को चोता रहा है”
उसने इग्ज़ैक्ट यही ‘चो*ता’ वाले शब्द बोले। अब यह लगभग असहनीय हो चला था।

अब यह मेरे अकेले के खिलाफ इतने लोग झुंड बन कर इकठे हो चुके थे, और मुझे मारने की धमकी के इलवा मेरे धर्म पर सीधा, और जान भूझ कर अटैक करने लगे थे की मेरे से सहा नहीं जा पा रहा था। अगले 3 घंटों तक मुझे नींद नहीं आई।

और रात को करीब 12 बजे, मेरे सीने में अचानक से बहुत तेज दर्द हुआ। इतना ज्यादा की मुझे लगा मैं अभी मरने वाला हूँ। करीब 5 मिनट तक मुझे बहुत पसीना आया। मेरे मुहँ से आवाज तक नहीं निकली की मैं किसी को आवाज मार के जगा लूँ। लेकिन फिर धीरे धीरे मुझे सांस ठीक से आने लगी। और फिर मैं नींद की एक गोली लेकर सो गया।

और आज सुबह मैं सिवल अस्पताल में अपना चेक अप आदि करवाने गया की कल कोई बड़ी बात न हो जाए। तो मुझे ईसीजी करवाने के बाद पता चला की कल रात मुझे फर्स्ट हार्ट अटैक आया था। जिसके डाक्यमेन्ट और मेडिकल रिपोर्ट मैं अपनी ऐप्लकैशन के साथ लगा रहा हूँ। (वहाँ सिवल अस्पताल में जो रेपोर्ट्स आदि आईं, वो नीचे, नेक्स्ट पोस्ट में दीं हैं)।

और उसके बाद यही कम्प्लैन्ट मैं बठिंडा पुलिस को देने जा रहा हूँ, और पुलिस उनके झुंड का प्रेशर न मानती हुई, सही को सही कहेगी, और अपनी रिपोर्ट बनाएगी। उम्मीद करूंगा की मेरी धार्मिक भावनाएं जान भूजह कर आहात करने वालों के खिलाफ (मैं समझता हूँ की जान भूजह कर और अनजाने में आहात करने में बहुत फरक होता है), और मुझे जान से मारने की धमकी देने वाले अनजान लोगों के खिलाफ़, जो की मैं विश्वास के साथ कहता हूँ की इन्ही के साथी, और इन्ही के भेजे हुए थे, के खिलाफ सख्त कारवाई की जाए। और जो मेरी मेडिकल कन्डिशन और मेंटल ऐगनी के जन्मदाता हैं, उन पर इन सभी धारों के तहत केस दर्ज किए जाएँ।

धन्यवाद उन लोगों का, जो एक समूह के रूप में इकठे होकर, एक अकेले व्यक्ति पर यूँ अटैक करते हैं।

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इस विषय पर मुझे बहुत सी धमकियां भी मिली. 29 मई की शाम को जब में साइकिल पर सैर करने के लिए निकला तोह थोड़ी दुरी पर मुझे कुछ बन्दों ने घेर लिया और जान की धमकी दी यह कहते हुए की अगले कुछ दिनों में अगर अपनी जान बचा सकते हो तोह बचा लेना। इन्ही धमकियों के डर से मेने अपने घर वालो को भी कुछ नहीं बताया क्योंकि में बहुत डर गया था।

उसी रात मुझे पहली बार ज़िन्दगी में हार्ट अटैक भी आया। सिविल हॉस्पिटल से मेने चेक अप कारवाई तो सामने आया की मुझे अटैक आया था जिसकी पूरी इनफार्मेशन निचे दी है।



Health and Ecg proofs.PDF (3.0 MB)

अब आपने मेरा विडिओ भी देख लिया होगा, जिसमें मैंने कुछ भी आप्ति जनक नहीं कहा था। लेकिन फिर भी अगर 10% कुछ गलत हो भी गया था, तो उसकी सैम डे, माफ़ी माँग ली उसी आइडी से।
लेकिन जो उन्होंने गंदगी बकी। काल रिकॉर्डिंग पर। मुझे सारा दिन कितने ही अनजान नम्बर से काल कर कर के परेशान करते रहे। और शाम होते होते जान से मारने की धमकी दी। और रात को मुझे मेडिकल ईमर्जन्सी हो गई, जान भी जा सकती थी (जिसके प्रूफ इसी पोस्ट में साथ में लगाए हैं मैंने)। और हिन्दू देवी देवताओं का जनाज़ा निकाल दिया। और यह सब की कम्प्लैन्ट मैंने 30 मई, 2020 को DCBTD/E/2020/00028 के तहत डीसी बठिंडा को दी।

लेकिन मेरी कम्प्लैन्ट पर आज तक, अभी तक, 21.6.2020 तक कोई एक्शन नहीं हुआ।
यह है हमारा समाज!!

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लेकिन इस सब के बाबजऊद मेरे पर निम्न FIR काट कर मुझे अरेस्ट कर लिया और जैल में डाला।

मेरी FIR की कॉपी:





#my
#fir
#on
#me

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The post was merged into an existing topic: ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, और शूद्र: देव समाज से कैसे जुड़ गए?

In एससी ऐक्ट cases Bail is available/should be given immediately, if surrendered : हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट

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7 साल से कम सजा वाले मामलों में प्रापर इन्वेस्टगैशन और अककुसएड को सुने बिना उसकी अरेस्ट नहीं हो सकती. 25अगस्त 2021 को, नारायण राणे के केस में, कोर्ट ने यह माना।

Very Very detailed case: Many other arguments against the arrest in such cases in Star India’s case in Jalandhar in 29 April 2010, in which victim’s petition was dismissed. इसमें इस बात को साइड पर रख कर की वाल्मीकि डाकू थे या नहीं, अककुसएड को इन्क्वर्री का मोका देते हुए उसकी अरेस्ट न करने के लिए कहने के बाद पिटिशन डिस्मिस कर दी गई।

munvar rana balmiki case, 25August, 2021

3/4/2018 को छपा यह आर्टिकल भी देखिए।

सुधीर चौधरी पर भी कारवाई गई fir, 15/10/2019 को, लेकिन पंजाब हाई कोर्ट ने 14 नवंबर को उसकी अरेस्ट पर रोक लगा दी। यह कहते हुए की उसने वही कहा जो आम लोगों में सदियों से कहा जा रहा है।

#judgements

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गुरबाणी में यह साफ साफ आया है की रत्ना डाकू ही आगे चल कर बाल्मीकि ऋषि बने।
अब गुरबानी को गलत साबित करना है तो आपकी मर्जी।

इसी चीज को पूरे संदर्भ में आप यहाँ पर देख सकते हैं:
http://igranth.com/shabad?id=6154&tuk=42414
Screen shot:

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Manjula Sahdev का केस

जब मई 2020 में मेरे (यानी बॉबी जोफ़न के) ऊपर 295a/एससी ऐक्ट के under केस दर्ज हुआ था, तब एससी कम्यूनिटी के लोगों ने मुझे मंजुला सहदेव की एक न्यूज पेपर कटिंग भेजी थी, जिसमें लिखा हुआ था की 2010 में प्रोफेसर (शायद अब रिटायर्ड) मंजुला सहदेव ने पंजाब हाई कोर्ट में यह साबित किया था की डाकू रतना आगे चल कर ऋषि बाल्मीकि नहीं बने। उनकी कटिंग यह रही:

लेकिन उसके बाद, हाल ही में, मेरे हाथ उसी हाई कोर्ट का, उन्ही मंजुला सहदेव का एक केस लगा, जिसमें बिल्कुल बीपरीत बात की गई है। उसमें बताया गया है की मंजुला ने अपनी बुक में रत्ना डाकू को एक ही साबित किया था। और एससी कम्यूनिटी ने मंजुला के खिलाफ़ ही केस कर दिया था, जो की कोर्ट ने कैन्सल कर दिया था (उस केस के 23/4/2019 के फाइनल डिसिशन की कॉपी मैं आपके लिए यहाँ नीचे दे रहा हूँ)। केस नंबर: (2019) 2 CriCC 529 : (2019) 2 RCR(Criminal) 1004

  • ऊपर दिए गए डिसिशन के पेज 2 (पॉइंट नंबर 3) में यह लिखा गया है की मंजुला सहदेव ने रतना डाकू को ही बाल्मीकि ऋषि लिखा था। इग्ज़ैक्ट वर्डिंग यह रही:
  1. Brief facts of the case, as alleged in the FIR, are that respondent No.2-complainant belongs to Balmiki caste (Scheduled Caste) and is a follower of Lord Balmiki. The petitioner No.1-Dr. Manjula Sahdev, Professor and Head of Department in the department of Religious Studies, Punjabi University, Patiala has published a book titled as “Maharishi Balmik - Ekk Samastik Adhyan”. In this publication at page Nos.69 and 75, the petitioner has referred Bhagwan Balmiki as a Dakoo and Lutera and by writing these words in her published book, the petitioner No.1 has hurt the religious sentiments of the whole Balmiki community and has shown utter disrespect to them. With these allegations, the FIR was registered.
  • इसी तरह पॉइंट नंबर 6 में यह आर्ग्यू किया गया है की मंजुला सहदेव की रिसर्च 10 वी शताब्दी के ग्रंथों/स्कन्द पुराण तथा वार्स ऑफ भाई गुरदास तथा दसम ग्रंथ के ऊपर आधारित है। जो की सभी 9वी शताब्दी के बाद के हैं।

… the research work and material collected by petitioner No.1 relates to 10th century and is an excerpt of Puranas, Vars of Bhai Gurdas and many other scriptures as well as Dashwan Granth.

  • लेकिन पॉइंट नंबर 7 और 7.1 में मंजुला सहदेव ने यह माना की यह सब 2010 के बाद के ग्रंथों में जिक्र आया है। उसके पहले बाल्मीकि ऋषि का ही जिक्र न के बराबर आया है।

From Vedic literature upto 9th Century A.D. there is no reference as such that Maharishi Valmiki led a life of a dacoit or a Highwayman. Even upto 9th Century A.D. the etymology of the word Valmiki ( a person born from an Ant-hill) is not available.

  • इसके बाद पॉइंट नंबर 8 में मंजुला की काउन्सल ने कहा है की 295A तो लग ही नहीं सकती क्यूंकी मंजुला सहदेव और उनके साथियों की तरफ से कोई रीलिजस सेनमन्ट हर्ट करने की कोई डिलिबरेट अटेम्प्ट नहीं हुई।

Learned senior counsel for the petitioner has further argued that from a bare perusal of the FIR the provisions of Section 295-A are not attracted as there is no deliberate or malicious act on the part of the petitioner No.1 to hurt the religious sentiments of respondent No.2- complainant or his community. The petitioner has not used any derogatory words against Bhagwan Balmiki.

  • आगे सहदेव की बुक में पेज 69 पर साफ साफ़ भाई गुरदास की वार का रेफ्रन्स दिखाया/दिया गया है, जिसमें एक जगह पर बाल्मीकि को पहले डाकू बताया गया है। यानि उन्होंने अपनी तरफ से कुछ नहीं कहा। केवल निचोड़ निकाला है।

Learned senior counsel has further referred to the disputed book wherein at page 69 with reference to Bhai Gurdas from 1551 to 1627, it is stated that in the book of Vara Bhai Gurdas there is a reference of Lord Balmiki and in one incident, while writing the brief history of Lord Balmiki, it is stated that he was a Lutera (dacoit). The senior counsel has, thus, argued that at page 69, the reference is made about Bhagwan Balmiki based on the book of Vara Bhai Gurdas published in 1962

  • एक और जगह, मंजुला जी की बुक के पेज 75 पर दिए विवरण के अनुसार, 1971 में छपी राणा प्रसाद शर्मा द्वारा लिखी गई एक पुस्तक ‘पुराणिक कोश’ में भी ये बात लिखी गई है की रत्ना डाकू ही आगे चल कर बाल्मीकि ऋषि बने।

Learned senior counsel has further referred to page 75 of this book, where again, it is stated that Bhagwan Balmiki, who had his old name as Ratnakar was a dacoit and when one day went to met Lord Shiva and Lord Narada, he wanted to commit dacoity but on their spiritual inspirations, he mend his ways. Learned senior counsel mentioned that this fact is based on a book on Rana Prasad Sharma titled as “Puranik Kosh”, published in 1971 as there is a reference of this book on page 75 itself.

  • पॉइंट नंबर 12.9 में काउन्सल ने एक और सुप्रीम कोर्ट के केस का हवाला देते हुए बताया है की सेक्शन 295A केवल तभी use हो सकता है जब जिस शखस पर धार्मिक भावना भड़काने का आरोप है, उसने यह काम साफ साफ जानभूझ कर किया हो, और उसको इसका नतीजा मालूम हो:

S. 295A does not penalise any and every act of insult to or attempt to insult the religion or the religious beliefs of a class of citizens but it penalises only those acts of insults to or those varieties of attempts to insult the religion or the religious beliefs of a class of citizens, which are perpetrated with the deliberate and malicious intention of outraging the religious feelings of that class. Insults to religion offered unwittingly or carelessly or without any deliberate or malicious intention to outrage the religious feelings of that class do not come within the section.

  • इसके बाद यही बाद कोर्ट ने भी यह बात 12.9 में स्वीकार की है:
  1. On a perusal of the aforesaid passages, it is clear as crystal that Section 295A does not stipulate everything to be penalised and any and every act would tantamount to insult or attempt to insult the religion or the religious beliefs of class of citizens. It penalise only those acts of insults to or those varieties of attempts to insult the religion or religious belief of a class of citizens which are perpetrated with the deliberate and malicious intention of outraging the religious feelings of that class of citizens. Insults to religion offered unwittingly or carelessly or without any deliberate or malicious intention to outrage the religious feelings of that class do not come within the Section.
  • इसके बाद पॉइंट नंबर 12.13 में भी एक और केस का जिक्र किया गया है, जिसमें 1998 में जय राम शर्मा के केस में कोर्ट ने 295A को लगाने से मना कर दिया।

Learned senior counsel has further relied upon Jai Ram Sharma Vs. State of Punjab , (1998) 3 RCR(Cri) 295 , wherein with reference another book on Maharishi Balmiki ,where certain comments were made by one Jai Ram Sharma, it was held by this Court as under :-
In order to attract the provisions of this Section, it is incumbent on the part of the prosecution that there was deliberate and malicious intention on the part of the offender and that such offender wanted to outrage the religious feelings of a particular community.strong text

  • और उसके बाद पॉइंट नंबर 9 में हाई कोर्ट ने मंजुला सहदेव और उसके साथियों के खिलाफ़ उस fir को quash करने का ऑर्डर दे दिया:

In these circumstances, I allow this petition and quash the FIR No.35 dated 11.4.1996 registered under Section 295-A IPC at Police Station Division No.3, Jalandhar City. A copy of the order be sent to SSP, Jalandhar with the direction not to prosecute the petitioner.

  • उसके बाद कोर्ट ने बहुत से केसेस का हवाला दिया जिन सभी में अककुसएड पर हुई 295A के अन्डर हुई FIRs को इसी बेस पर क्वॉश कर दिया की जब तक क्लियर्लि किसी जन समूह की भावनयों को भड़काने के लिए कुछ न बोला गया हो, तब तक 295a नहीं लगाई जा सकती।

  • आगे सुप्रीम कोर्ट ने 2010 के एक केस में साफ कहा है की क्रिमिनल ला का यह काम नहीं है की वो किसी भी व्यक्ति को इस लिए पनिश करे की उसने कोई ऐसे विचार व्यक्त कर दिए हैं जो की जनता में unpopular हैं/हों।

Learned senior counsel has further relied upon S. Khushboo Vs. Kanniammal and another , (2010) 2 RCR(Cri) 793 , wherein the Hon’ble Supreme Court has held that it is not the task of the criminal law to punish individuals merely for expressing unpopular views.

  • पॉइंट नंबर 15 में और क्लेयर किया गया है:

The threshold for placing reasonable restrictions on the ‘freedom of speech and expression’ is indeed a very high one and there should be a presumption in favour of the accused in such cases. It is only when the complainants produce materials that support a prima facie case for a statutory offence that Magistrates can proceed to take cognizance of the same. We must be mindful that the initiation of a criminal trial is a process which carries an implicit degree of coercion and it should not be triggered by false and frivolous complaints, amounting to harassment and humiliation to the accused."

  • और इस प्रकार मंजुला सहदेव पर हुई FIR को फाइनल पॉइंट नंबर 23 और 24 में डिस्मिस कर दिया गया:

In view of the above, this petition is allowed and FIR No.59 dated 16.6.2009 under Section 295-A IPC got registered at Police Station Division No.7, Jalandhar and subsequent proceedings are quashed.
The petition stands disposed of, accordingly.

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उसके बाद 2010 में स्टार टीवी पर दिखाए गए एक प्रोग्राम के केस में भी FIR हुई थी, जो बाद में quash की गई।
Delhi High Court का स्टार टीवी केस [ (2011) 182 DLT 636 : (2011) 125 DRJ 327] का फाइनल डिसिशन आप नीचे दिए गए लिंक पर देख सकते हैं:

  • इसके डिसिशन के पॉइंट नंबर 4 में काउन्सल ने यह आर्ग्यू किया है की यदि किसी लेक्चर या प्रोग्राम आदि में कोई अब्जेक्शनबल बात कही गई है तो उसको अलग से नहीं देखा जा सकता बल्कि उस पूरे प्रोग्राम (या लेक्चर) के पर्स्पेक्टिव में ही देखा जा सकता है/देखा जाना चाहिए।

The reference to Maharishi Valmiki had to be seen in the context of the serial and could not be taken out of context and analyzed. The programme had to be viewed in totality and then judged whether it abided by the PC or not.

  • स्टार टीवी के इस प्रोग्राम में एक बच्चा अपने अंकल से पूछता है की वो वाल्मीकि जी की कथा पढ़ रहा था, जिसमें वो एक चोर से साधु बन गए, क्या सचमुच कोई इंसान इतना बदल सकता है? तो उसके अंकल ने जबाब दिया की वाल्मीकि जी में होनसला और आत्म विश्वास था, आदमी में हिम्मत हो तो वो सब कुछ कर सकता है। तो कोर्ट ने पॉइंट नंबर 13 और 14 में कहा की पूरे एपिसोड में से केवल यह 2 लाइंस को अलग से नहीं देखा जा सकता है। उस पूरे एपिसोड में वाल्मीकि जी को कहीं भी नीचा दिखाने की कोशिश नहीं की गई है।

Alekh: I was reading the story of Valmiki. Did he really become a saint from being a thief… can a person change so much?
Uncle smilingly explains: Valmiki ji had courage… and selfconfidence…there is No. stopping a person who has faith and complete confidence in oneself…
When the above scene is viewed in the context of the theme of the serial and the entire episode, it is difficult to appreciate the conclusion drawn by the Respondent that it contains any derogatory remarks against Maharishi Valmiki

  • आगे पॉइंट नंबर 16 में कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई केसेस का हवाला देते हुए कहा है की "कहे गए शब्दों के असर रीज़्नबल, स्ट्रॉंग माइन्डिड, दृढ़, और बहादुर व्यक्तियों के स्टैंडर्ड्स के हिसाब से देखे जाने चाहियें, न की कमजोर और जल्दी प्रभावित हो जाने वाले दिमागों वाले व्यक्तियों के। न ही उनके जो खुद के विचारों के बीपरीत कुछ सुन ही नहीं सकते।

the effect of words “must be judged from the standards of reasonable, strong-minded, firm and courageous men, and not those of weak and vacillating minds, nor of those who scent danger in every hostile point of view.”

  • और अंत में,पॉइंट नंबर 20 में, स्टार टीवी पर, इसलिए हुए केस को की उन्होंने रत्ना डाकू को ही बाल्मीकि दर्शाया था, कैन्सल कर दिया गया।

For the aforementioned reasons, this Court finds the impugned warning dated 3rd/4th March 2010 issued by the I&B Ministry to the Petitioner to be unsustainable in law. It is hereby set aside. The writ petition is allowed, but in the circumstances, with No. order as to costs.

पंजाब हाई कोर्ट ने एक बार फिर से कह दिया है की जिस किसी को च*** कहा गया हो, केवल वही दोषी के खिलाफ़ FIR कर सकता है, कोई तीसरी पार्टी, खुद को समाज सेवी कह कर कोई कम्प्लैन्ट नहीं कर सकती है की उसकी भावनाओं को चोट पहुँची है।


(खबर आज के दैनिक भास्कर में)

क्या रत्ना डाकू ही आगे चल कर ऋषि बाल्मीकि बना?

** इस संबंध में इंडिया की बिभिन्न अदालतों के फैसलों में जो बातें कही गईं हैं, उनको, उनके केस नंबर के साथ, मैं नीचे दे रहा हूँ। डिसिशन की पूरी कॉपी आपको यहाँ पर मिल जाएगी।

इसके बारे में ऐसे 5 केसेस का जिक्र कर रहा हूँ, जिनमें खुद सुप्रीम कोर्ट ने माना है की कैसे रत्ना डाकू जैसा इंसान भी आगे चल कर बाल्मीकि ऋषि बन सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने ऋषि के डाकू होने की बात का अपनी, निम्नलिखित, 5 जजमेंटस में जिक्र किया है।

  • Rakesh Kaushik vs. B.L.Vig Superintendent, Central Jail, New Delhi and another, 1980 Supp Supreme Court Cases 183,:

"Every prisoner is a person and personhood holds the human potential which, if unfolded, makes a robber a Valmiki and a sinner a saint.”
अनुवाद: “हरेक कैदी में सुधारने की वोही संभावना है, जो एक लुटेरे को एक बाल्मीकि बना सकती है और एक पापी को एक संत।”


  • Maru Ram v. Union of India, AIR 1980 SC 2147:

"The question, therefore, is- should (we release) the criminals committing heinous crimes in the holy hope or wishful thinking that one day or the other, a criminal, however, dangerous or callous he may be, will reform himself. Valmikis are not born everyday and to expect that our present generation, with the prevailing social and economic environment, would produce Valmikis day after day is to hope for the impossible.”
अनुवाद: “देश के सामने यह प्रश्न है की क्या निर्दयी और जघन्य अपराधी भी सुधर सकते हैं या नहीं? बाल्मीकि रोज जन्म नहीं लेते, और आज के परिवेश में ये उम्मीद करना की (ऐसे सुधरने वाले) बाल्मीकि रोज जन्म ले सकते हैं एक नामुमकिन की उम्मीद करना होगा।”


  • Bachan Singh vs. State of Punjab, AIR 1982 SC 1325:

"Was Jean Valjean of Les Miserbles not reformed by the kindness and magnanimity of the Bishop? Was Valmiki a sinner not reformed and did he not become the author of one of the world’s greatest epics?.. ”
अनुवाद: “क्या लेस मिसरबल का जीन वलजेयन बिशप की नेकी और दया देख कर सुधर नहीं गया था? क्या बाल्मीकि, एक पापी, सुधरा नहीं था, क्या वो (आगे चल कर) संसार के महानतम काव्यों में से एक के लेखक नहीं बने?”


  • State of Gujarat v. The Hon’ble High Court of Gujarat, AIR 1998 SC 3164:

"It is a grand transformation recorded in the epics that the hunter Valmiki turned out to be a poet of eternal recognition. If the powers which brought about that transformation had remained inactive in world would have been poorer without the great epic “Ramayana”. Forces which condemn a prisoner and consign him to the cell as a case of
irredeemable character belong to the pessimistic society which lacks the vision to see the innate good in man.”
अनुवाद: "महाकाव्यों में यह लिखा है की कैसे यह एक भव्य रूपांतर था की एक शिकारी बाल्मीकि सदैवी पहचाना वाला ऋषि बाल्मीकि में रूपांतरित हुआ। यदि यह परिवर्तन लाने वाली शक्तियां निष्क्रिय रहतीं तो संसार एक महान महाकाव्य ‘रामायण’ से वंचित रह जाता। इसलिए ताकतें जो एक कैदी को अमोचनीय अपराधी ठहरा कर एक सेल में बंधित कर देती हैं, एक ऐसी निराशावादी समाज की कही जा सकतीं हैं, जिसके पास एक मनुष्य में जन्मजात अच्छाई देखने की दृष्टि नहीं रह गई है।




और इसी डिसिशन में, पंजाब की हाई कोर्ट ने अलग अलग लोगों के द्वारा ऋषि और रत्ना डाकू को एक कहने वालों के खिलाफ़ की गईं कितनी ही FIR एक साथ कैन्सल कर दीं। ऐसा हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कुछ और केसेस को आधार बना कर, और उनका जिक्र करके किया, जो सब मैं आगे बता रहा हूँ।

  • पंजाब हाई कोर्ट ने Criminal Miscellaneous Petition CRM No: 20543 of 2009 के 2014 के अपने डिसिशन में आगे दिए गए सभी एक जैसे (एससी ऐक्ट के अन्डर रजिस्टर किए हुए केसेस, जो की Sections 153-A, 295-A, 120-B of the IPC, and Section 3(1)(X) of the Scheduled Castes and the Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Act, 1989, के अंदर रजिस्टर किए गए थे) को अपने फैसले में जोड़ कर एक साथ ही कैन्सल कर दिया। इन सभी, 10 के 10 केसेस, में वोही रत्ना डाकू को बाल्मीकि ऋषि कहे जाने जाने पर पुलिस ने, ज्यादातर 3rd पार्टी के कहने पर, FIR रजिस्टर की थीं।
यह केसेस हैं:
1. CRM-M No. 20543 of 2009
Manisha Sharma and another vs State of Punjab and another
2. CRM-M No. 20634 of 2009
Manisha Sharma and another vs State of Punjab and others,
3. CRM-M No. 35064 of 2009
State of Punjab vs Narendra Khanna
4. CRM-M No. 36757 of 2009
State of Punjab vs Suraj Anand
5. CRM-M No. 36768 of 2009
State of Punjab vs Ashu Khurana
6. CRM-M No. 36775 of 2009
State of Punjab vs Sunil Chopra
7. CRM-M No. 856 of 2010
State of Punjab vs Manisha Sharma
8. CRM-M No. 448 of 2011
Pushpa Arora vs State of Punjab and another
9. CRM-M No.14313 of 2012
Yashpal Kaushal & anr vs State of Punjab and another
10. CRM-M No.18490 of 2014
Manisha Sharma vs State of Punjab and another

जज साहब अपने जजमेंट में नीचे दी गई बातें कहते हैं:

इन सभी केसेस में एक बात जो मुख्य रूप से कोम्मन है की fir में यह कम्प्लैन्ट की गई है accused ने किसी न किसी ढंग से यह बात कही है की महाऋषि ऋषि बनने से पहले एक रत्ना नाम के एक डाकू थे, और कई केसेस में इसके पीछे की कहानी भी बयान की गई है।
कोर्ट के सामने मुख्य प्रश्न है की क्या इस तरह की बातें कहने में या छापने में, किसी तरीके से ऋषि बाल्मीकि की भर्त्सना करती हैं या नहीं?


इस संभनध में कोर्ट ने एक पिटिशन में पटिशनर के द्वारा कही गई महत्वपूर्ण पॉइंट का जिक्र करते हुई कहा है की:

यह वृतांत कई धार्मिक बुक्स में अंकित है, जिसमें गुरु ग्रंथ साहिब भी शामिल है। और इसके इलावा यह बात इस देश की जनता न दूसरे माध्यमों, मोखिक या दृश, से भी सुन रखा है। और इस देश की परम्परागत लोग गाथायों और नीति गाथायों में भी ऋषि बाल्मीकि के इतिहास की यह, उनके गौरव को (घटाने नहीं, बल्कि) बढ़ाने वाली, कहानी बहुत से लोगों ने सुन रखी है।


जज साहब ने आगे कहा की:

मेरे हिसाब से जब तक accused बात को इस ढंग से नहीं कहता (जो की बात किस कांटेक्स्ट में कही गई है, उससे पता चल जाता/सकता है) की ऋषि की बेइज्जती झलकती हो, या साफ पता चलता हो की वो ऋषि की बेइज्जती करना चाहता है, तब तक इसमें कहने वाले का कोई दोष नहीं है। मैंने ऊपर के सभी केसेस को डीटेल में पढ़ा है और पाया है की इन सभी केसेस में (ऐसा कह कर) उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है।


आगे जज साहब ने स्टार इंडिया के बिल्कुल सैम केस में (Star India Private Limited vs Union of India, W.P
(C) 3823 of 2010 decided on 26.8.2011), जिन्होंने की एक प्रोग्राम प्रकाशित किया था, जिसमें डाकू रत्ना को बाद में बाल्मीकि होते दिखाया गया था, इस बात का जिक्र किया की, स्टार इंडिया को एक वार्निंग जारी की गई थी, जिसके विरुद्ध स्टार इंडिया ने कोर्ट की शरण ली थी, और फैसला स्टार इंडिया के हक में आया था।

उसके बाद जज साहब ने फिर से कुछ केसेस का हवाला देते हुए दोहराया की

ऐसे किसी भी केस में प्रासक्यूशन को यह बिल्कुल साफ साबित करना होगा की अककुसएड ने जो भी बातें कहीं हैं, वो सभी बातें नफरत फैलाने के मकसद से कही गईं हैं। आप पूरे लेक्चर या बुक या नाटक में से कोई 1-2 बातें अलग निकाल कर उसको दोषी करार नहीं दे सकते।


और अंत में हाई कोर्ट ने यह कहते हुए सभी अककुसएड के प्रति अलग अलग जगहों और अलग अलग केसेस में हुई सभी fir एक साथ ही कैन्सल कर दीं।