आज जब कुछ सिख भाई कहते हैं की हम हिन्दुओं से अलग हैं (मैंने भिंडरावाले, जिसने इंदिरा गाँधी के साथ मिलकर, या उसके इशारों पर चलते हुए पंजाब में आग लगा दी जिसके परिणाम स्वरुप पहले बहुत निर्दोष हिन्दू और बाद में आगे चलकर बहुत निर्दोष सिख मारे गए, की एक विडियो देखि थी, जिसमें भिंडरावाले को बहुत ग्यानी बंदा बता कर यह दिखाया गया था की सब धर्मों की जड़ सिख धरम है), तो मुझे गुरु गोबिंद सिंह जी (जिन्होंने सिख पंथ की स्थापना हिन्दू कोम की रक्षा के लिए की थी) की याद आ जाती है, जो की खुद एक हिन्दू (खत्री) थे, और उनका लास्ट नाम ‘राय’ था.
खैर, इसके इलावा कुछ तथ्य बताता हूँ, जिससे पता चलेगा जब सिख पंथ की स्थापना हुई तो खत्री और ब्राह्मण जो की तब सारे हिन्दू थे, आगे आये.
जब गुरु गोबिंद सिंह जी अपने राज्य और हिंदुस्तान की जनता के लिए लड़ाईयां लड़ रहे थे, उस वक़्त अकेले गुरु गोबिंद सिंह जी ही नहीं थे, बल्कि राजपूतों और ब्राह्मणों ने भी अलग अलग राज्यों में मुगलों की नाम में दम कर रखा था.
जब पहली खालसा फौज बनी, (तब अभी सिख पंथ की नींव नहीं रखी गयी थी, इसलिए वो सभी हिन्दू ही थे, और इसकी डिटेल इस पोस्ट में दी गयी है) तब उसका नेत्रत्व एक ब्राह्मण भाई प्राग दास के हाथ में था. उनके बाद सेना की कमांड उनके बेटे मोहन दास ने संभाली.
सती दास जी, मति दास जी, दयाल दास जी, सभी गुरु जी की फौज के नायक/कमांडर थे, जिन्होंने गुरु जी की रक्षा के लिए अपनी जान दे दी.
इतना ही नहीं, गुरु जी को शास्त्रों की शिक्षा देने वाले, पंडित कृपा जी भी एक ब्राह्मण थे. कहते हैं की उनसे बड़ा योधा पंजाब में कभी नहीं हुआ.
जब 40 मुक्ते डर कर किला छोड़ कर भागे थे, तब एक बैरागी ब्राह्मण लक्ष्मण दास जी (जिनको बाद में बंदा बहादुर के नाम से जाना गया) और यहाँ तक की उनके 14 साल के बेटे अजय भरद्वाज गुरु जी के परिवार की रक्षा के लिए सरहंद में लड़े.
1699 में गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की. और गुरु ग्रन्थ साहिब को इस पंथ का पूज्निये बताया. उनसे पहले सभी गुरुओं ने हिन्दू धरम की बहुत सी कुरीतियों पर वार किये और अपने शिष्यों से उनपर न चलने की सलाह दी. ऐसा केवल उन्होंने नहीं किया, बल्कि अपने अपने वक़्त में हमेशा समाज सुधारक इन कुरूतियों के विरुद्ध लड़ते रहे.
जैसे की गुरु अमर दास जी वर्ण प्रथा के खिलाफ थे व इसका विरोध किया. और सती प्रथा का भी विरोध किया (जो पूरी तरह लोक मान्य तिलक ने ख़त्म करवाई, अंग्रेजों के टाइम में)
चौथे गुरु राम दास जी ने हरमंदिर साहेब की फाउंडेशन रखी (जिसको आज का मीडिया नाम बिगाड़ कर दरबार साहिब कहने लग गया, जो की मैं मानता हूँ गुरुओं की शिक्षा का घोर अपमान है. क्यूंकि अगर गुरु जी ने उसको हरिमंदिर रखा था, तो उसके बहुत मायने थे)
यानी गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा खालसा/सिख पंथ की स्थापना करने से सभी गुरु हिन्दू ग्रंथों में दिए भगवन को ही पूजते थे, या पूज्निये मानते थे. शादियों में भी हिन्दू मन्त्र ही पढ़े जाते थे (गुरु ग्रन्थ साहिब की होंद में आने के बाद ग्रन्थ साहिब के इर्द गिर्द परिक्रमा शुरू की गयी)
इसलिए मुझे दुःख होता है जब कोई भी हिन्दू और सिख को अलग अलग जाहिर करने की कोशिश करता है.
यह सब मैंने इन्टरनेट के अलग अलग स्त्रोतों से इकठा किया है. अगर मेरी जानकारी कहीं पर भी गलत हो तो कृपया मुझे जरूर बताएं. ताकि मैं भविष्य में किसी को गलत बताने की बजाये सही बताने में सक्षम होवून.
बॉबी ज़ोफन